राजीव कुमार झा की कविता : मनमीत

।।मनमीत।।
राजीव कुमार झा

जो मनमीत बनेंगे
अपने दिल की बातें
कहां सुनेंगे
सब उसको देखेंगे
मन की बातें
हम कैसे खुद को
कभी कहेंगे
अपने हालातों पर
शायद हम तभी
हंसेंगे
रातरानी
रात की राहों में
महकती
सुबह चिड़ियां
अमरूद की
डालियों पर आकर
फुदकती
वह मनमीत
आज हमारे घर
शायद आयेगा
स्टेशन के बाहर
सबको इंतजार
करता पाएगा
मिठाई लेकर
उसी शहर से आएगा
मीठे पकवान
जहां बनते
दिलदार यहां पर
बसते
हम उसके घर जाएंगे
शाम में चौराहे पर
आएंगे
चाट पकौड़े खाएंगे
गीत खुशी के गाएंगे

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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