।।धूप भरी राहों में।।
राजीव कुमार झा
हम कहां राह में
अब रुक जाते
तुम्हारे चरणों पर
शीश नवाते
बादल के संग
मन की फुहार
जब लाते
घर में आने से पहले
सूखे मन से
तुम मुझको
गले लगाते
हम अपने आंगन में
आकर
तुम्हें बुलाते
यहां आकाश
अपना
मानो सबसे
सुंदर सपना
हमने देखा
सूरज ने किरणों की
धार
सुबह दरवाजे पर
फेंका
कोई आज
शपथ फिर लेगा
यह सबकुछ
फिर कब बदलेगा
अपना प्रेम
उसे जब देगा
सोया यह संसार
कुहासे में
सूरज निकला
हिमालय
धूप भरी राहों में
पिघला