।।सन्नाटे से भरे दिन।।
राजीव कुमार झा
अच्छे दिनों के पास
आकर
हम तब सबसे मिलेंगे
आईना सुबह में
चमकता
तब आदमी मुस्कुराता
घर के बाहर निकलता
बीत जाती जिंदगी
किसी कहानी की तरह
कोई रात हंसकर
सबको कहती अकेली
बाग में महकती
किसी दिन अकेली
शाम को याद करती
उसे कोई सहेली
धूप के आते ही
बीत जाएगा
वसंत का यह मौसम
सन्नाटे से भरे दिन
तब तुम्हारे साथ फिर
अच्छे लगेंगे
हम पहाड़ों पर चलेंगे