।।सबके हिस्से में नहीं आता।।
डॉ. राम बहादुर दास
“सबके हिस्से में”
ये जमी, ये आसमान,
ये खुशी, ये मुस्कान,
रोटी, कपड़ा और मकान,
सबके हिस्से में नहीं आता।
ये ऐतवार, ये प्यार,
ये आंसू, ये इंतजार,
सकून भरा एक इतवार,
सबके हिस्से में नहीं आता।
ये मंजिल, ये रास्ता,
ये सफर, ये रात, ये शाम, ये शहर,
हाथ पकड़ के चले,
ऐसा हमसफर,
सबके हिस्से में नही आता।
बेशक ये किसी कहानी,
किसी किस्से में नहीं आता,
ये जिंदगी मिलती है,
मगर जीना सभी को
नहीं आता।
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