डॉ. आर बी दास की कविता : कहां खो गए हैं

।।कहां खो गए हैं।।
डॉ. आर.बी. दास

आजकल शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते!
जाने क्यू,अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते!
पहले बता दिया करते थे दिल की बातें!
जाने क्यू, अब चेहरे खुली किताब नहीं होते!
सुना है बिन कहे, दिल की बात समझ लेते थे,
गले लगते ही दोस्त हालात समझ लेते थे,
तब ना फेस बुक था ना स्मार्ट फोन, ना ट्विटर अकाउंट,
एक चिट्ठी से ही दिलों के जज्बात समझ लेते थे,
सोचता हूं हम कहां से कहां आ गए,
व्यवहारिकता सोचते सोचते भावनाओ को खा गए,
अब भाई, भाई से समस्या का समाधान कहां पूछता है,
अब बेटा, बाप से उलझनों का निदान कहां पूछता है,
बेटी नहीं पूछती मां से गृहस्थी के सलीके,
अब कौन गुरु के चरणों में बैठकर ज्ञान की परिभाषा सीखता है!
परियों की बातें अब किसे भाती है,
अपनों की यादें अब किसे रुलाती है,
अब कौन गरीब को सखा बताता है,
अब कहां कृष्ण सुदामा को गले लगाता है,
जिंदगी में हम केवल व्यवहारिक हो गए हैं,
मशीन बन गए हैं हम सब, इंसान ना जाने कहां खो गए हैं!!

डॉ. राम बहादुर दास
सलाहकार,
विश्व विद्यालय अनुदान आयोग,(UGC)

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