“आज का व्यवहार”
माया , मोह , लोभ, चिंता में भटक रहा संसार है।
मैं ही हूं , मुझ से सब कुछ है,ऐसा भरम अपार है।।
धन दौलत की महिमा मंडन , यही रहा व्यवहार है।
रिश्ते नाते सब कुछ लगता, आज बना व्यापार है।।
स्वार्थ नहीं तो मिलना क्या, बातें करना बेकार है।
काम पड़े तो जो कुछ कर, दुश्मन भी बनता यार है।।
अजनबियों से नाता जोड़े , जो पहनाता हार है।
अपने जो कुछ कह जाएं तो, बहुत बड़ी तकरार है।।
समय आज कुछ ऐसा ही है , करना इसे स्वीकार है।
अपनों पर अपनों का अब तो, रहा नहीं अधिकार है।।