महिला दिवस पर विशेष भोजपुरी कविता  : “नाहीं कहली”

 “नाहीं कहली”

खुलि के कबहूँ आपन उ बात नाहीं कहली,

जागल जवन प्यार में ज़ज्बात नाहीं कहली !

जानि गइनीं उनुका चुप्पी के राज हम,
चुप रहि के अपना दिल के हालात नाहीं कहली !

रूसल बा उनुकर मनवा टूटल भी बाs त का,
सौ झूठ सुनली तबो दिन के राति नाहीं कहली !

अंखिया से जब बहेला गंगा-जमुन के धार,
दू बूँद आँसुवन के बरसात नाहीं कहली !

उ बान्हि लिहली ख़ुद के अपने ही बान्ह में,
निज नेह के उ बदलल हालात नाहीं कहली !

गावेली बिरहा के उ भावन में गूँथि के,
बाकिर ओ दर्द के भी नगमा उ नाहीं कहली !

हृषीकेश

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