#Women Day : मर्द नहीं, महिलाएं हैं जिंदगी की असली नायक, सच्चाई दर्शाती बॉलीवुड की ये 5 फिल्में

#Women Day : हर साल 8 मार्च को दुनिया भर में महिला दिवस यानी खासतौर पर महिलाओं को समर्पित एक दिन सेलिब्रेट किया जाता है। ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं बॉलीवुड की उन महिलाओं के बारे में, जिन्होंने अपनी फिल्मों के सहारे लोगों की सोच बदलने का काम किया। भले ही आज महिलाएं शिक्षा एवं राजनीति से लेकर समाज सेवा, फ़िल्मी गलियारे और यहां तक कि फैशन वर्ल्ड में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हों, लेकिन अभी भी महिलाओं को चारदीवारी में जकड़ने की परंपरा पर जोर दिया जाता है। लड़कों संग दोस्ती रखने वाली, घुटने से ऊंची स्कर्ट पहनने वाली लड़कियों को लेकर समाज का नजरिया ज्यों का त्यों ही है।

भले ही लड़का कितना भी आवारा क्यों न हो, लेकिन बहू सुंदर और सुशील ही चाहिए होती है। हालांकि, बॉलीवुड की कुछ फिल्मों में बहुत हद तक इस सोच को बदलने का काम किया है। ऐसे में जब महिला दिवस यानी खासतौर पर महिलाओं को समर्पित एक दिन सेलिब्रेट करने में कुछ ही दिन बचे हैं, तो हमने सोचा क्यों न आपको ऐसी फिल्मों से रूबरू कराया जाए, जिन्होंने दकियानूस समाज को आइना दिखाने का काम किया।

1) की एंड का (Ki & Ka)

करीना कपूर खान और अर्जुन कपूर पर आधारित फिल्म ‘Ki & Ka’ मॉडर्न जमाने की एक ऐम्बिशस वीमेन की मजेदार कहानी है, जो अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए एक ऐसे इंसान से शादी करती है, जो घर संभालने के साथ-साथ उसका ख्याल भी रखे। फिल्म खूबसूरती से इस बात को बताती करती है कि महिलाएं अपने करियर के लिए रास्ते खुद तय करती हैं।

फिल्म में करीना अपने करियर को लेकर इतनी स्पष्ट थीं कि उन्होंने शादी के बाद भी अपने फ्यूचर गोल्स को कम नहीं होने दिया। यही नहीं, फिल्म मर्दों की उस सोच को भी प्रभावित करती है, जिन्हें लगता है कि अगर महिलाओं को थोड़ी सी भी आजादी दी जाए तो वह आपको नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं। मां और पत्नी होना भी फुल-टाइम जॉब’ ऐश्वर्या राय बच्चन की भांजी नव्या नवेली नंदा की ये बातें हर हाउस वाइफ के दर्द को करती हैं बयां

2) पिंक (Pink)

दिल्ली में किराए पर रहने वाली तीन वर्किंग लड़कियों मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नू), फलक अली (कीर्ति कुल्हारी) एंड्रिया तारियांग (एंड्रिया) जैसी एक्ट्रेसेस पर फिल्माई गई खूबसूरत फिल्म ‘पिंक’ लोगों की उस सोच को दर्शाती है, जहां लड़कियों की छोटी स्कर्ट पहनना और मेल फ्रेंड्स के साथ हैंगऑउट करने को बुरी नजर से देखा जाता है। फिल्म में वर्जिनिटी और ड्रिंकिंग हैबिट्स को लेकर भी सवाल किए हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं है कि समाज किस तरह से दोहरे मानकों पर लड़के और लड़कियों को रखता है।

हालांकि, फिल्म की खूबसूरती उस यह भी बताती है कि अगर कोई महिला एक बार ‘न’ कहती है, तो किसी भी किसी भी पुरुष को उसे छूने और उसके साथ जबरदस्ती करने का अधिकार नहीं है। चाहे फिर वह किसी की पत्नी ही क्यों न हो। मर्दों की तरह महिलाओं को भी अपनी आजादी प्यारी है और उन्हें भी दोस्तों संग पार्टी करने या अपने पसंद के कपड़े पहनने का पूरा हक़ है।

3) दिल धड़कने दो (Dil Dhadakne Do)

प्रियंका चोपड़ा, रणवीर सिंह, अनुष्का शर्मा और फरहान अख्तर जैसे टॉप एक्टर्स पर फिल्माई गई फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ परिवार में उलझे किरदारों की खूबसूरत कहानी है। पति-पत्नी के बीच तनाव होने के बाद भी वह दुनिया वालों की नजरों में अच्छा बनने की कोशिश करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। यही नहीं, फिल्म का प्लाट सीन बताता है कि उस रिश्ते से बाहर निकलना ठीक है, जिसमें आप खुश नहीं हैं। भले ही दुनिया आपके खिलाफ क्यों न हो। अपने लिए थोड़ा स्वार्थी होना गलत नहीं है। न ही अपने बारे में सोचना कोई पाप है। बहन कृष्णा को चादर में लपेट देना चाहते हैं टाइगर श्रॉफ, लोग क्या सोचेंगे इसकी भी नहीं परवाह

4) क्वीन (Queen)

कंगना रनौत के करियर की अब तक की सबसे हिट फिल्मों से एक ‘क्वीन’ मॉडर्न जमाने की एक सीधी-सादी लड़की की एक खूबसूरत कहानी है, जो पैरेंट्स की मर्जी से शादी करना, पति की मर्जी से अपने जीवन के फैसले लेने को ही अपना धर्म मानती है। हालांकि, फिल्म में मजेदार ट्वीस्ट तब आता है, जब गुड्डू (राजकुमार राव) रानी (कंगना) से शादी करने के लिए मना कर देता है।

इस दौरान कंगना को इस बात का एहसास होता है कि हमारी जिंदगी कैसी होनी चाहिए, इसका फैसला सिर्फ और सिर्फ हम कर सकते हैं। यही नहीं, फिल्म यह भी बताती है कि टॉक्सिक रिलेशनशिप और कंट्रोल में रखने वाले संबंधों से दूर रहना ही सबसे बेहतर है। एक रिश्ते को तब तक निभाया जा सकता है, जब तक उसमें प्यार और विश्वास हो।

5) लिपस्टिक अंडर माय बुर्का (Lipstick Under My Burkha)

भोपाल की तंग गलियों में कोंकणा सेन, आहाना कुमार और रत्ना पाठक शाह जैसी एक्ट्रेसेस पर फिल्माई गई ‘लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का’ पुराने खयालात को पीछे छोड़ नई विचारधारा में जीने की चाह रखने वाली चार महिलाओं की एक खूबसूरत कहानी है। यह इकलौती ऐसी फिल्म है, जो बताती है कि भले ही हमारा समाज कितना भी आगे क्यों न बढ़ गया हो, लेकिन महिलाओं को लेकर लोगों की सोच अभी भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई है।

फिल्म न केवल औरतों को जिंदगी की मुसीबतों से छुटकारा दिलाने और उनके वजूद को तलाशने पर आधारित है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक महिला चाहे तो चार पैसे कमाकर अपने पति का सहारा बन सकती है। फिल्म में कोंकणा सेन ने एक ऐसी ही महिला का किरदार निभाया है, जिसे घर खर्च चलाने के लिए छिप-छिपकर नौकरी करनी पड़ती थी। यह फिल्म उस सोच को भी दर्शाती है जहां आज भी मर्द घर की महिलाओं का भविष्य तय करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *