जो देश में हो वो होने दो
जो देश में हो वो होने दो ,
पहरेदारों को , सोने दो।
कानून उधर काम अपना करे ,
अपराध इधर कुछ होने दो।
लोग उनको झुक के सलाम करें ,
ये नशा भी उनको होने दो।
तब होगा बचाव का काम शुरू ,
घर बाढ़ को और डुबोने दो।
वो कुछ न हकीक़त जान सकें ,
ख्वाबों में उन्हें तो खोने दो।
रहने दो न क़त्ल का कोई निशां ,
उन्हें खून के धब्बे धोने दो।
क्यों फ़िक्र है इतनी जनता की ,
जनता रोती है , रोने दो।
डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक