हिंदी की युवा कवयित्री वंदना जैन से साक्षात्कार…

युवा कवयित्री वंदना जैन मुंबई में रहकर काव्य साधना में निरंतर संलग्न हैं। इनका हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रह ‘कलम वंदन’ पठनीय है और इसमें कवयित्री ने प्रेम के इंद्रधनुषी रंगों में जीवन के आत्मिक यथार्थ को उकेरा है। प्रस्तुत है इनसे राजीव कुमार झा की बातचीत…

वन्दना जैन
शिक्षा : एमए, राजनीति विज्ञान व एमए, लोक प्रशासन।
अनुभव : अध्यापन व स्वयं का व्यवसाय।
स्थायी पता : वाशी, नवी मुम्बई, जिला थाने, महाराष्ट्र।
अभिरुचि : कविता लेखन, पर्यट्न, संगीत।
मूल रूप से मुंबई, महाराष्ट्र की रहने वाली और पेशे से शिक्षिका हूँ। मैंने महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्ववद्यालय अजमेर, राजस्थान से राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की है।

आरम्भिक दिनों में लेखन में काफी रूचि थी परन्तु समय के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी रूचि बढ़ने लगी फिर लेखन पीछे छूटता गया। जीवन में कई बदलाव आये और इस यात्रा के हर पड़ाव के अधिकांश क्षणों को मै मन में स्मृतियों के रूप में संजोती चली गई, इन्ही में से कई क्षणों को मैंने कविताओं में भी संजोया है।

पारिवारिक उत्तरदायित्व और जीवन की व्यस्तताओं में इतने वर्ष कैसे बीत गए पता ही नहीं चला इस दौरान कभी लिखने का विचार नहीं आया, गत 1-2 वर्षों से कविताएं पढ़ने लगी और लेखन आरम्भ किया।

साहित्यिक यात्रा :
गत कुछ 1-2 वर्षों में व्यस्तताएं कम होने लगी और झुकाव फिर से कविताओं की ऒर होने लगा कवि कुमार विश्वास की श्रृंगार व प्रेम से परिपूर्ण कविताएं मुझे बहुत पसंद आने लगीं परन्तु लेखन का आत्मविश्वास और दिशा तब भी नहीं मिला पा रही थी।
फिर कुछ ही महीनों पहले सोशल मीडिया पर एक समूह से जुडी वहां थोड़ा-बहुत लिखना प्रारम्भ किया।

एक मंझे हुए लेखक की रचनाओं को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हिंदी भाषा में उनकी विद्धता, लेखन शैली, सरलता, शब्दों की जादूगरी ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया उसके बाद मेरी कलम को लेखन का उद्देश्य मिल गया। अपने भावों को कागज पर उतार कर मन भी प्रसन्न रहने लगा। कई मित्रों ने समय-समय पर उत्साह भी बढ़ाया।

कई अखबारों और पुस्तकों में रचनाए प्रकाशित होने लगी और आत्मविश्वास बढ़ते-बढ़ते आज उस पड़ाव को पार करके मै अपनी रचनाओं का संकलन “कलम वंदन” प्रकाशित कर पायी।

साहित्यिक लेखन की विशेषता व कलम वंदन के बारे में :
मुझे प्रकृति से अत्यधिक लगाव है। प्रेम, श्रृंगार और विरह पर भी लिखना बहुत पसंद है अतः मेरी अधिकांश रचनाएं प्रकृति और प्रेम को समाहित करके ही लिखी गयी है।

श्रृंगार, प्रेम, विरह के अतिरिक्त स्त्री विमर्श और जीवन दर्शन भी मेरी रचनाओं के विषय-वस्तु रहे है।
मेरी कविताओं की भाषा सरल, स्पष्ट व सहज है कई स्थानों पर हिंदी के साथ कुछ उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

प्रिय कवि :
डॉ. कुमार विश्वास एक भारतीय कवि, वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इनकी श्रंगार रस से ओत-प्रोत कविताओं को कुछ वर्षों से पढ़ती आ रही हूँ अतः स्वाभाविक है मुझे भी श्रंगार पर लिखना खूब भाता है और मेरे काव्य संकलन में भी अधिकांश कविताएं श्रंगार रस की है।

भारत में महिलाओं की स्थिति :
भारत में महिलाओं की स्थिति में गत कई दशकों से कई बदलाव आते रहे हैं, वैसे बदलाव का समय तो प्राचीन काल से ही प्रारम्भ हो गया था। प्राचीन काल में महिलाओं के समाज में महत्त्व था, मध्य काल में उनकी समाज में गिरती अवस्था में अनेक सुधारों के लिए कई सुधारकों द्वारा प्रयास किये गए। वर्तमान काल में भी सरकारों द्वारा महिला विकास के लिए चलायी जाने वाली योजनाओं से इस दिशा में गतिशीलता झलकती है।

वर्तमान समय में महिलाओं के लिए समाज के सुर और स्वरों में काफी बदलाव आये हैं। नारी को समाज ने अर्धांग के रूप में स्वीकार करते हुए उसके महत्त्व को स्वीकार करना शुरू कर दिया है और पिछले कुछ वर्षों में तो महिलाओं ने सिद्ध कर दिया है कि वे शिक्षा, बुद्धि, स्वास्थ, सौंदर्य और वीरता अदि क्षेत्रों के कार्यों में पुरुषों के समान ही सक्षम हैं।

आज नारी चाहे कॉरपोरेट क्षेत्र हो या छोटे व्यवसाय और नौकरी, घर और पेशा सभी स्थानों पर अच्छे से प्रबंध कर सकती है। महिला आरक्षण बिल व महिला सशक्तिकरण बिल ने महिलाओं में काफी जागरूकता और शक्ति सम्पन्नता पैदा की है।

मेरा मत :
वर्त्तमान समय में नारी सशक्तिकरण की बहुत बातें होती हैं, मेरा मानना है कि सशक्तिकरण को कुछ गिनी-चुनी महिलाओं के सन्दर्भ में ही देखा जाना चाहिए। यद्यपि इस क्षेत्र में सरकार और समाज ने कई सशक्त कदम उठाये हैं, परन्तु अभी भी घर और कार्यस्थल पर अधिकांश महिलाओं को किसी न किसी रूप में शोषण का सामना करना पड़ता है। कई महिलाऐं अपने सपनों का बलिदान करती हैं, कई घरेलु हिंसा का शिकार होती हैं, प्रतिदिन किसी न किसी बालिका या महिला के साथ दुष्कर्म की घटना सुनने या पढ़ने में आती है।

साक्षरता में आज भी महिलाऐं पुरुषों से पीछे हैं अतः आने वाले कई वर्षों में सरकार और समाज द्वारा और अधिक प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। महिलाओं को भी स्वयं के सामर्थ्य और अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा, इसके लिए आवश्यकता है उनकी उच्च शिक्षा, कार्यस्थल पर हो रहे भेदभाव व बुरे बर्ताव को रोकना, समाज द्वारा उनके विचारों और प्रगतिशीलता को महत्त्व देना।

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