अमिताभ अमित की कलम से – सरकारी नौकरों के लिए सोमवार

अमिताभ अमित, पटना। सोमवार सरकारी नौकर के जीवन की सबसे बडी आपदाओ, विपदाओं, समस्याओं मे शामिल है और खुदा ना खास्ता ये लम्बी छुट्टियों के बाद चला आये, तब तो सरकारी लोगो को बाप मरने जैसा ही अफसोस होता है! शुक्रवार आता है! सरकारी बंदा अगली दो दिन की छुट्टियो को लेकर जितना खुश होता है, आने वाले सोमवार के बारे मे सोचकर उससे ज्यादा दुखी हो जाता है! हाँलाकि उसे इन दो छुट्टियो में करना-धरना कुछ होता नही! वो भूख से ज्यादा नाश्ता करने के बाद भी किचन के चक्कर लगाता है! फ़ोन पर बाते बनाता है! माँ-बहनों के बताये हर काम को नज़रअन्दाज़ करता है! बिस्तर पर औंधा लेटकर टीवी देखता है! बिस्तर पर ही लंच-डिनर करता है! भतीजों- भांजो को होमवर्क ना करने पर डपटता है और यह चाहता है कि सोमवार अपना आना मुल्तवी कर दे!

सरकारी कैलेन्डर मे सोमवार वाली तारीख को लाल-नीली रंगी देखकर किसी भी सरकारी नौकर को उतना ही सूकून मिलता है, जितना किसी नाउम्मीद जोडे को शादी के दस-बारह बरस बाद किसी अस्पताल मे पैदा हुई अपनी पहली औलाद का मुँह देखने से हासिल होता है! सोमवार के साथ सबसे बडी दिक्कत यह है कि वह बिलानागा रविवार के बाद बेशर्मो की तरह चला आता है! रविवार की खुमारी टूट भी नही पाती और ये बिन-बुलाये मेहमान की तरह दरवाजे की कुंडी खडका देता है! आपको धु-धौ करके उसे ख़ुशामदीद कहना ही होता है!

सरकारी आदमी के निश्चिन्त जीवन में संडे के बाद सोमवार का चला आना ऐसे ही है जैसे आपकी हँसती-खेलती कार भागलपुर-nh80 पार करते ही सदर बाजार की भीड-भरी संकरी सडको मे जा फँसे! तर गुलाबजामुनो का भोग लगाते वक्त फैमली डॉक्टर आपको डॉयबिटिक होने की सूचना दे या आप सपने मे नोरा फतेही के दर्शन लाभ मे व्यस्त हो और आपके पिताश्री आपकी रज़ाई खींच कर जगा दे!

आमतौर पर सोमवार के मनहूस दिन साहब का फोन जगाता है ठीकेदार को! वे ठीकेदार से विगत सभी समस्याओं के जवाब ना कि जगह हां सुनने की उम्मीद कर रहे होते हैं! वे चाहते है ठीकेदार आँख खोलते ही उन्हे उन समस्याओं के बारे मे डिटेल मे सफाई दें जो आप शुक्रवार शाम तक पूर्ण नही कर पाए थे! वे यह चाहते है कि आप vedio conferencing के सवालों से जूझने में आपकी वजह से उन्हें कोई मुश्किल न हों! अब आप ही बताईये कोई समझदार सरकारी नौकर भला शुक्रवार को काम करता है! जो चूंकि सारे ही सरकारी बंदे समझदार होने के कारण ही सरकारी होते है इसलिये उनसे शुक्रवार के दिन काम करने की उम्मीद सरासर नादानी ही मानी जाती है!

सरकारी हो चुका आदमी, रविवार बीतते-बीतते अगले शनि की छुट्टी के सपने देखने लगता है और शुक्रवार लंच टाईम का वक्त होते-होते अपनी दुकान बंद कर देता है! फिर इसे सोमवार दोपहर बाद बमुश्किल बेमन से खोलने को राजी होता है!
सरकारी आदमी सोमवार को अपने काम पर लौटता ही इसलिये है क्योकि वह अपने खूसट साहब से डरता है और साहब सोमवार को इसलिये ऑफिस आता है ताकि उसके मातहत ऑफिस आते रहें!

साहब सोमवार को ऑफिस इसलिये भी चला आता है क्योकि यदि वो ऑफिस नही आयेगा तो जायेगा कहाँ? करेगा क्या? उसकी अपनी ही माँ-बहन, पत्नी नही चाहती कि वो घर मे बना रहे! शनि-रवि के बाद उसके सोमवार मे जहर घोले! लिहाजा घरवालों के धक्के से भी साहब ऑफिस आता है और सोमवार सुबह सारे स्टाफ की खैर-खबर लेता है! चूंकि साहब सोमवार को ऑफिस भेजा जाता है इसलिये उसके मातहतो को भी सोमवार अपनी नौकरी बजानी ही पडती है!

हाँलाकि समर्थ कर्मचारी सोमवार को रविवार मे बदलने की कूबत रखते हैं पर सभी ऐसा नही कर पाते इसलिये सोमवार को अपने ऑफिस जाते हैं! खुद दुखी होते है और सारे संसार को दुखी करते हैं! सोमवार कुछ सोच विचार करे इस पर! लाखो सरकारी लोगो की थोक के भाव बद्दुआये लेना ठीक नही! सरकारी आदमी जब किसी से नाराज़ होता है तो मौक़े का इंतज़ार करता है और जब भी उसका दाँव लगता है वो निपटाये बिना मानता नहीं, ऐसे मे अपनी आवाजाही पर विचार कर ले वो! रिस्क लेने का कोई मतलब है नहीं! यदि आना जरूरी ही हो तो वो संडे के एक दो दिन बाद आ सकता है! खैर जो भी हो! यह तो तय है कि यदि कैलेंडर मे सोमवार ना होता तो सरकारी दुनिया ज्यादा सुखी होती!!

अमिताभ अमित – mango people

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