पल में प्रसन्न हो के, भूल क्षमा करते हैं
ऐसे भोले भण्डारी के चरणों में आइये
जटाओं में सुरसरि, चन्द्रमा ललाट पर
नन्दी पे सवार छवि मन में बसाइये
जग के कल्याण हेतु विष का जो पान करें
ऐसे शिव शम्भु का सतत गुण गाइये
मन से कलुष, क्लेश तन से मिटा दे, इसी
भावना से भव-भय-भञ्जक को ध्याइये
डीपी सिंह