डीपी सिंह की रचनाएं

।।चुनावी मधुशाला।।

लॉबी पाँच सितारा वाली, कमरा है एसी वाला
बैठे गोरी चमड़ी वाले, दिल उनका बेशक काला
हर कौवे की चोंच मोतियों से जड़ने की प्लानिंग है
हर गरीब, मजदूर, किसानों का दिन है फिरने वाला

लॉबी पाँच सितारा वाली…

जली सिगार दबी होठों में, छल्ला है धूएँ वाला
बोतल टेबल पर विलायती, हाथों में लेकर हाला
गहन सोच में भूल गए हैं, सुन्दरियाँ हैं सेवा में
कड़कनाथ से प्लेट सजा है, और संग में पटियाला

लॉबी पाँच सितारा वाली…

सागर मन्थन करते कहकर, अमृत है मिलने वाला
शब्द शब्द से किन्तु निकलती, गरल हलाहल की ज्वाला
लूट लूट का जोर जोर से, वो भी शोर मचाते हैं
जड़ा हुआ था जिनके मुँह पर, कल तक अलीगढ़ी ताला

लॉबी पाँच सितारा वाली…

ऑक्सफोर्ड से आये हैं वो, अर्थनीति पढ़कर आला
लेकिन समझ नहीं आता है, हुआ कहाँ गड़बड़झाला
गाड़ी जितनी आज जलेंगी, नई बिकेंगी भी कल को
कर के भारत बन्द मिटाते, अर्थव्यवस्था का ठाला

लॉबी पाँच सितारा वाली…

–डीपी सिंह

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