।।भारत के भाल और मेरे भाल के बीच तुलनात्मक व्यंग्य रचना।।
बाथरूम में मचा हुआ था, सुबह-सुबह हुड़दंग
साबुन-शैम्पू भिड़े हुए थे, छिड़ी हुई थी जंग
पूछा तो दोनों ने रक्खे, अपने-अपने तर्क
सुनकर मेरा माथा ठनका, मैं हो गया सतर्क
मेरा माथा, मेरे तन का, है अभिन्न जो अंग
सीमा निर्धारण की इसके, छिड़ी वहाँ है जंग!
दोनों जता रहे थे इस पर, अपना ही अधिकार
हार मानने को कोई भी, नहीं हुआ तैयार
शैम्पू कहता, रहने भी दे, मत कर मुझसे रार
अबतक तो मुझपर था इसके, देखभाल का भार
साबुन ने शैम्पू पर झट से, कसा करारा तंज
देखभाल जो की होती, क्यों बनता दरियागंज?
नहीं रुकेगी, अब तो होगी, सैलूनों तक जंग
नाई को लिख कर चिट्ठी मैं, करवाऊँगा तंग
शैम्पू बोला, नेहरू चाचा-सा मैं हूँ नहीं उदार
घास नहीं यदि उगे, चीन को, दे दूँ क्या उपहार?
आख़िर मैंने कर ही डाला, झगड़े का उपचार
छीन लिया दोनों से मैंने, सब विशेष अधिकार
तब से मेरे बाथरूम में, है चौतरफ़ा शान्ति
नल के जल में कल-कल, मेरे, विकल फ़ेस पर कान्ति
–डीपी सिंह