ओ सुकोमल कविमन (गीत) : पारो शैवलिनी

“ओ सुकोमल कविमन” तुमने बहुत से गीत रचे हैं मेरे लिए आज फिर से रचो,

“जात-जात” (भोजपुरी कविता) : हृषीकेश चतुर्वेदी

*जात-जात* बाजत नइखे कवनो झंकार जात-जात, टूटत बाटे दिल के अब तार जात-जात, बिदाई के

डीपी सिंह की सवैया

सवैया ==== काली अलकैं मुख पर ढलकैं जस नागिन सी बलखाय रहीं मुखमण्डल पर कुछ

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अपशब्द बोलकर लीद मत खाओ ( व्यंग्य )

चलो सबसे पहले उनकी कही बात को उनके तराज़ू के पलड़े पर रखते हैं तोलते

“कुरूक्षेत्र” मेरी नजर से तृतीय भाग (कविता) : प्रमोद तिवारी

कुरूक्षेत्रः मेरी नजर से (तृतीय भाग) है प्राची लाल हो गई, किरण बेहाल हो गई,

डीपी सिंह की कुण्डलिया

*कुण्डलिया* अपना सत्ता पक्ष है, राजनीति में दक्ष। किन्तु सामने लक्ष्य से, भटका हुआ विपक्ष।।

“कुरूक्षेत्र” मेरी नजर से द्वितीय भाग (कविता) : प्रमोद तिवारी

 कुरूक्षेत्रः मेरी नजर से द्वितीय भाग अनादि आज विफल क्यों? कुपात्र पात्र हो गया !

किस तरह कहें यहां कुछ भी नहीं (ग़ज़ल) : डॉ लोक सेतिया “तनहा” 

किस तरह कहें यहां कुछ भी नहीं किस तरह कहें यहां कुछ भी नहीं  जो

“कनिया” (भोजपुरी कविता) : हृषीकेश चतुर्वेदी

“कनिया” झाँकि के झरोखा से पुरुआ झरकि आवे, बाँस-बँसवारी चोंइ-चोंइ चीखे चौंकि के। —————————————- अंगना

डीपी सिंह की कुण्डलिया

खेती के भी मायने, बदल गए श्रीमान। पहले केवल अन्न की, खेती करे किसान।। खेती