अर्जुन तितौरिया की कविता : राम

*राम*

अगर राम तुम नदी पार करो तो में केवट बन जाऊं,
चरण धूल उस निर्मल जल को माथे तिलक लगाऊं।

अगर राम तुम वन में आओ तो मैं निषाद राज बन जाऊं,
गले लगाऊं आपको जीवन धन्य बनाऊं।

अगर राम तुम भूखे हो तो मैं शबरी बनजाऊं,
खिलाऊं मीठे बेर चख चख कर भव सागर पार हो जाऊं।

अगर राम तुम तपस्वी बन वन गमन को आओ तो में हनुमत बन जाऊं,
राम भजन में लीन रहूं अजर अमर हो जाऊं।।

अर्जुन तितौरिया

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