रूपल की कविता : “माँ”

माँ कई दिनों से माँ को हर रोज़ रात को फ़ोन करती हूँ सोने से

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आत्मनिर्भरता की पढ़ लो पढ़ाई ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया 

शहंशाह का मूड आज बदला बदला है आज खास बैठक में बात आत्मनिर्भर बनाने की

रिया सिंह की कविता : “पण्डित जी”

“पण्डित जी” धर्म का चोला पहनकर अधर्म वो करते रहते हैं, कुछ पण्डित ऐसे भी

मां ने कहा है बेटा बहु को ले आओ ( कहानी ) : डॉ लोक सेतिया 

चिट्ठी लिखी है मां ने बेटे के नाम। सबसे ऊपर लिखा है राम जी का

वर्चुअल मंच पर “सावन की कजरी” का आयोजन

कोलकाता : कोरोना के आतंक के इस दौर में शनिवार 1 अगस्त 2020 को शाम

हाशिए के प्रश्न को केंद्र में लाने वाले लेखक हैं प्रेमचंद

कोलकाता : खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज के हिंदी विभाग द्वारा ‘प्रेमचंद स्मृति व्याख्यानमाला’ का आयोजन

प्रेमचंद की 140वीं जयंती पर विशेष : शोषण के तिलिस्म को तोड़ते – मुंशी प्रेमचंद

प्रेमचंद के पूर्व जिस तरह के साहित्य लिखे जा रहे थे, उनके मूल में कल्पना

तारकेश कुमार ओझा की कविता : “घर में रहता हूं”

“घर में रहता हूं” लॉक डाउन है, इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .

रिया सिंह की कविता : “जगत जननी”

“जगत जननी” जिसके सपने टूट कर भी, एक आशा लेकर जारी है गुणों से युक्त

तारकेश कुमार ओझा की कविता : “खुली आंखों का सपना”

खुली आंखों का सपना  ….!!          सुबह वाली लोकल पकड़ी पहुंच गया