शीश झुकाता हूँ सरल हो जाता हूँ

मस्तिष्क सबमें उठक-बैठक करता है। करतब दिखाता रहता है। ज्ञानी होने का आकर्षण सबको बाँधता

बुलंदी से नीचे गिरने का भय ( डरावना ख़्वाब )

बात इज्ज़त के सवाल की होती है तब ऑनर किलिंग के नाम पर घर परिवार

स्वतंत्र भारत में “लाइन” से छुटकारा कब ??

अपने देश में कुछ बातें अटल हैं , जिसमे लाइन में खड़े होना मुख्य है

बाजार की समय सारिणी में बदलाव जरूरी 

कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर लॉक डाउन से किसी को एतराज नहीं हो सकता

कोरोना महामारी में कुछ जिम्मेदारी आम नागरिकों की भी बनती है

कोरोना के इस संक्रमण काल में सिर्फ सरकार के भरोसे बैठे न रह कर बहुत

संक्रमित व्यक्ति या परिवार के साथ सामाजिक दूरी नहीं बल्कि शारीरिक दूरी बनाये

मौत का पर्याय बन चुके कोविड-19 महामारी से देश भर में जिस तरह से मौतों

मास्क के भरोसे पुलिस के जवानों को ड्यूटी पर लगा देना ठीक नहीं

कोविड़ के इस भयानक दौर में पिछले 14 महीनों से पूरे देश की पुलिस के

कोरोना : सिर्फ इंसानों को नहीं बल्कि इंसानियत भी कर रहा खत्म

  कोविड-19 के चलते सिर्फ इंसान ही नहीं खत्म हो रहे हैं बल्कि इंसानियत भी

मूर्ख और लोभी मतदाता

यह हकीकत भारत के कमोबेश सभी गांवों या शहरों की है। ये तस्वीर पंचायत या

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अपना गुणगान खुद करने वाले : डॉ लोक सेतिया

इसको पागलपन कहते हैं अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना। हमारा कौमी तराना यही है शान