स्वतंत्र भारत में “लाइन” से छुटकारा कब ??

अमितेश कुमार ओझा

अपने देश में कुछ बातें अटल हैं , जिसमे लाइन में खड़े होना मुख्य है । एक बच्चे के जन्म होते ही उसके परिजनों का परिचय बर्थ सर्टिफिकेट बनाने के लाइन परंपरा से होता है । लाइन में खड़े होने की यह कवायद मनुष्य के मृत्यु होने पर डेथ सर्टिफिकेट हासिल करने की जद्दोजहद पर पहुंच कर समाप्त होती है । जीवन प्रवाह में कदम – कदम पर ऐसे मौके आते हैं , जब चाहे – अनचाहे इंसान को कतार में खड़े होना पड़ता है ।

उदाहरण के रूप में वोटर कार्ड की लाइन ,आधार कार्ड की लाइन , पैन कार्ड की लाइन ,राशन कार्ड की लाइन , ये इस तरह की लाइनें है जिसमें 90 प्रतिसत लोगो की एक बार में सही तरीके से बन कर कभी नहीं आती। कभी नाम में गलती ,कभी निवास स्थल में गलती ,कभी पिता जी के नाम में गलती , जिसे सुधारने में मनुष्य की आधी जिंदगी लाइन में ही बीत जाती है।

ये लाइन कभी खत्म नहीं होती इसके बाद देश के युवाओं से लेकर बुजुर्ग तक को नोटबंदी में नोटो को चेंज करने की भी एक लाइन देखने को मिली। फिलहाल देश को कॉरोना जैसे समय में दवाओं की लाइन ,फिर वैक्सीन की लाइन, कोविड़ की जांच की लाइन ,मृत्यु होने पर शव जलाने की लाइन का भी सामना करना पड़ रहा है।

पता नहीं मृत्यु के बाद भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी कहीं इस लाइन व्यवस्था होगी। इस देश में गरीब से लेकर अमीरों तक को इस लाइन का सामना करना पड़ता है। आने वाले पीढ़ी को पढ़ाई लिखाई में आगे हो या ना हो लेकिन उसे लाइन में लगने के तरीकों को सीखना बहुत जरूरी है। केंद्र में बैठी सरकार को इस लाइन व्यवस्था को समाप्त करने के लिए किसी एक कार्ड की प्रचलन का शुरुआत करनी चाहिए। जिससे आदमी के समय की बचत हो और अनावश्यक दिक्कतों का सामना ना करना पड़े।

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