कोरोना : सिर्फ इंसानों को नहीं बल्कि इंसानियत भी कर रहा खत्म

 

राज कुमार गुप्त

कोविड-19 के चलते सिर्फ इंसान ही नहीं खत्म हो रहे हैं बल्कि इंसानियत भी खत्म हो रही है। वर्तमान में पूरे विश्व पर जो कोरोना का कहर टूटा है, इस आपदा को भी आज सभ्य कहे जाने वाले समाज के ही कुछ लोग कमाई करने के अवसर में बदलने में लगें हुए हैं।

जबकी किसी को भी खुद के कल का कोई भरोसा नहीं है की जिंदा बचेंगे या नहीं, फिर भी हर जगह जमाखोरी, कालाबाजारी, मक्कारी, गैरजिम्मेदारी दिखाई दे रही है और कहीं कोई जिम्मेदार नहीं, किसी को जेल नहीं भेजा जा रहा, इस आपातकाल में इन कामों को करने वालों को फांसी नहीं दी जा रही। हमारे समाज का घिनौना और घटिया चरित्र आज सामने है।

आखिर ऐसा देश और समाज कैसे उठ सकता है, जहां हर कोई एक दूसरे को नोचने में लगा है? हमने देश की आजादी के बाद से एक ऐसा तंत्र विकसित किया जिसमें अपने काम, समाज और देश के प्रति ईमानदारी से समर्पित लोग न रहे! समाज मे आई इस गिरावट को जानने के लिए कभी कोई आयोग नहीं बना, कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई!

हम खुद भी जिस नाव में सवार है उसमें जिन छेदों से पानी अंदर आ रहा है, हम उन्हें भरने या रिसाव रोकने की जगह अपने थैले समेटने, कंधों पर टांगने, बक्से को सिर पर रखने में लगे हुए हैं ये सोचते हुए की नाव किनारे लगते ही हम तो पार उतर जायेगें पीछे आने वाले अपना समझें।

परंतु ऐसी नाव के सहारे कब तक हम पार उतरते रहेंगे? नाव को तो एक न एक दिन डूबना ही है कारण हमारे देश रूपी नाव को चलाने वाले नाविकों ने इन छिद्रों को भरने का कभी ईमानदारी से प्रयास ही नहीं किया। बीच भंवर में नाव को कभी न कभी तो डूबना ही है।

आज कोरोना के इस संक्रमण काल में परेशान मरीजों और तीमारदारों से निजी अस्पताल वालों का लूट जारी है और एम्बुलेंस वाले मनमानी रुपये वसूलने में लगें हैं। मरीजों और तीमारदारों की कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही है।

कोरोना वायरस के कहर से जहां देश की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलकर रख दी है तो वहीं बहुत से इंसानों के असली रंग को भी बाहर ला दिया है। महामारी के इस दौर में समाज में एक-दूसरे के साथ की बहुत जरूरत है, लेकिन इस समय कुछ लोग रुपयों की खातिर अपना ईमान बेच रहे हैं।

कुछ दानव रूपी इंसान जहां दवा, ऑक्सिजन जैसी चीजों की कालाबाजारी करने में लगे हैं तो कुछ लोग कोरोना से हुई मौतों से भी अपना फायदा ढूंढ रहे हैं। एम्बुलेंस वाले रोगी या लाश को ले जाने के लिए अनाप शनाप रुपये मांग रहे हैं।

ये लोग पीड़ितों को इतना मजबूर कर देते हैं कि उनके पास इनके लिए बद्दुआ और आंसू के अलावा कुछ नहीं रहता। इंसानियत को शर्मसार करने वाले ऐसे मामले पूरे देश से सामने आ रहे हैं।

इस बीच कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी जान हथेली पर रख कर भी मरीजों के लिए बहुत ही उत्कृष्ट कार्य किये जा रहे हैं। परंतु देश मे सभी सरकारें अभी भी इन बेईमान लोगों और सिस्टम को दुरुस्त नहीं कर पा रहे हैं। कोई तो नाव को बचाओ भाई डूबने से…

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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