आम राय से फैसला ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

दो पक्ष बन गये थे और तमाम प्रयास करने पर भी कोई निर्णय हो नहीं पा रहा था। उधर तारीख भी नज़दीक आती जा रही थी , सवाल आने वाले को पूरी तरह खुश करने को था। बस वो खुश होकर मनचाहा वरदान दे जाये मसीहा बनकर डूबती नैया को किनारे लगा जाये। इक टीम चुनी गई जिसको तय करना था कौन कौन सा फल टोकरी में डालकर भेंट करना , कौन कौन सा फूल गुलदस्ते में सजाना स्वागत में पेश करने को।

कौन कौन सी मिठाई खिलानी और किस हलवाई की बनाई। सब चाहते थे सही चुनाव किया जाये , मगर तभी इक सदस्य ने आरोप लगाकर कि मुझपर दोनों पक्ष दबाव डाल रहे हैं उनकी पसंद की दुकान से कमीशन लेकर खरीदारी करने का। और ऐसे में हम निष्पक्ष होकर फैसला एकमत से नहीं कर सकते , ये बात दोनों पक्षों को सूचित कर दी गई। उसके बाद जो इतने दिनों से नहीं हो पा रहा था ठीक वक़्त पर हो गया। मगर ये कैसे हुआ ये इक राज़ की बात है। दोनों पक्षों की दो दुकानें हैं बाज़ार में सब्ज़ी की। जिस जिस को टीम में लिया गया था वो सब भी अलग अलग फल बेचते हैं। दो फल महंगे लगे उनको छोड़ दिया गया बाकी हर फल का एक एक पीस शामिल कर लिया टोकरी में।

फूल और मिठाई पर मतभेद होना लाज़मी था , जो मधुमेह रोग से पीड़ित थे उनको कठिनाई थी सामने होते पसंद का मिष्ठान नहीं खाना परहेज़ की खातिर। बाकी जगह चुप चाप छुप कर स्वाद ले लेते थे पर सब के सामने करना मुश्किल था। फूल भी कुछ लोग सुगंध से एलर्जी के कारण पास नहीं देख सकते थे , और ये भी लगा कि फूलों को तोड़ना गलत है साथ ये मिलते भी बहुत महंगे दाम हैं। इसलिए सब्ज़ियों का इक टोकरा सजाया गया जो मसीहा को दिया जाना है जिसका उपयोग वो बाद में कर सकेगा।

प्याज़ आलू भिंडी बैंगन मूली गाजर खीरा गोभी सब को मिला दिया गया , मिक्स वेज का काम और साथ में सलाद भी। और सब मान भी गये , सब की दुकान से कुछ न कुछ शामिल किया गया।

जब भरी सभा में उनको भेंट किया गया तो उनको पसंद आया ये नुस्खा , उन्होंने पूछा ये असंभव कार्य किस तरह संभव हुआ , सब को साधना सहज नहीं होता। तब किसी ने उनको इक पुरानी कहानी पढ़कर सुनाई। एक बार किसी बड़े आदमी के खानसामा से बेहद महंगी कोई डिश बेस्वाद बन गई , अब फिर से सब सामान मंगवाना आसान नहीं था और कुछ ही देर में महमान आने को थे। खानसामा ने बाकी सब खाने का सामने रख दिया मगर उस डिश को आखिर में खिलाने को रख लिया।

साथ में इक तेज़ नशे की शराब भी पिलाने को प्रस्तुत करता गया। शराब के नशे में धुत सब महमान जो जैसा था खाते गये , आखिर में उस डिश को सभी को अपने हाथ से खिलाने को सुंदर महिलायें सोलह श्रृंगार किये बुलाई गईं। खाने वाले स्वाद से अधिक उनके सौंदर्य का रस पीते रहे और सब को उस बिना स्वाद की डिश सब से अच्छी लगी। बस कुछ इसी तरह सब को खुश किया गया उनको इशारे से समझाया गया।

कहानी का अंत हुआ नहीं था , मामला अभी भी अदालत और पंचायत दोनों का पास लटका हुआ है। कोई था जो अड़ा हुआ था कि समझौता नहीं इंसाफ होना चाहिए। और इंसाफ है कि छुपने को जगह तलाश करता फिरता है। घटना सच्ची है मगर हमेशा की तरह सच बोलना नहीं है आपस की बात है। दिन क्या है और क्या रात है। बारिश के मौसम में भी हुई नहीं बरसात है , कौन है गुनहगार सब को मालूम है , पेचीदा मामला है हर किसी का हाथ है कोई नहीं लगाता लात है। घात लगाने वाले को भी लगी घात है। देखते हैं अभी तो नई शुरुआत है।

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