राजीव कुमार झा की कविता : अपना साथ

।।अपना साथ।।
राजीव कुमार झा

शीत की धूप
ढलने के बाद प्यार में
रातें गुजारना
अकेले होकर
दोस्तों से रिश्तों को
निभाना
किसी को कुछ भी
नहीं बताना
रास्ते में चलते
आगे सबकुछ छोड़कर
जाना
यारो अपना साथ
छूट जाता
प्यार के बारे में कोई
कुछ भी नहीं बताता
याद आता
कोई गांव अपना
मानो वसंत का सपना
हरे भरे खेत
खलिहानों में धूप का
आना
गुजरता रास्ता
मैदानों में
हवा के पास आकर
ठहर गया हो
जिंदगी में कुछ भी
बाकी नहीं रहा हो

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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