डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया

फिर से घर में हों वही, एक-नेक परिवार
सुगठित स्वस्थ समाज से, जुड़ें सभी के तार

जुड़ें सभी के तार, प्यार दें दादा-दादी
बच्चे सब मिल-बाँट, खेलने के हों आदी

कैसे उतरे भूत, आधुनिकता का सिर से
बचपन के दिन काश! लौट कर आयें फिर से
डीपी सिंह

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