जनाब सच सच बोलो नहीं कुछ भी छिपाना है ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया 

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

सियासत की आदत होती है बताते कम हैं छिपाते ज़्यादा हैं। मगर ये क्या सभी ऐसा करने लगे हैं। टीवी चैनल अख़बार मीडिया बताते नहीं समझाने की कोशिश करते हैं कि उनका झूठ झूठ होकर भी झूठ नहीं है उनका बाज़ार ही झूठ का है जिस में सच का कोई काम ही नहीं है। लेकिन अदालत को क्या हुआ है आप को देश के कानून की इंसाफ की बात कहनी है आपने इक दिन भगवान को अपनी ढाल बना लिया और घोषणा कर दी हमने अनुमति दे दी तो भगवान भी माफ़ नहीं करेगा।

भगवान से गवाही की बात कहां थी बताओ किस भगवान ने आपको कैसे बताया कि उनकी माफ़ी कब किसे मिलेगी किसे नहीं मिलेगी। भगवान अब आपको माफ़ी दे देगा जब आपने अपनी कही बात बदल कर अनुमति दे दी है। भगवान नहीं हुआ आपके झूठे गवाह हो गए जो हर मुकदमे में घटना के चश्मदीन गवाह होते हैं। भगवान और आस्था का मज़ाक बना दिया है आपको कोई धर्म की मंदिर मस्जिद की राजनीति करनी है आपको देश की कानून व्यवस्था संविधान की रक्षा करनी है मगर आप तो लगता है सत्ता की भाषा पढ़ने सीखने बोलने लगे हैं। देश में बहुत कुछ था भगवान भरोसे अब न्याय व्यवस्था भी भगवान के भरोसे होगी क्या।
पता नहीं ऊपर वाला कब इंसाफ करेगा लोग तो थक गए हैं विनती करते करते न्याय नहीं मिलता झूठी तसल्ली भी कोई नहीं देता बस खुद ही दिल को बहलाते हैं वो है सब देख रहा है। देखती तो सरकार भी है अदालत पुलिस भी मगर जो करना है करती नहीं अब भगवान को जाने कब चिंता होगी दुनिया को सही करने को भलाई का साथ और बुराई का अंत करने को अपना पलड़ा इंसाफ के तराज़ू का सही रखने की। कोई धर्म के नाम पर डंडी नहीं मार सके ऐसा कब होगा।
       दादा जी को मरे हुए भी पचास साल हो गए हैं। उन्होंने जीवन भर ईमानदारी और मेहनत से बहुत कुछ खड़ा किया था। उस ज़माने में रिश्तों की अहमियत होती थी और दादा जी की आदत थी भलाई करने की जो भी सहायता मांगता देते थे मगर जब उनकी तबीयत बिगड़ी कुछ रिश्तेदार समझे उनका बचना मुश्किल है और वो जो भी उनके हाथ लगा ले कर चंपत हो गए। मगर दादा जी बच गए मगर उनकी आदत थी माफ़ करने की खुद ही अपने बेटों को आदेश दिया उनसे कोई झगड़ा नहीं करना। कहावत सुनाते थे दो पैसे की हंडिया गई कुत्ते की जाट पहचानी गई।
ऐसे कुत्तों को घर गली में दोबारा नहीं घुसने देने की नसीहत दे गए थे। कुत्तों से सावधान रहने का सबक समझा गए थे ये भी कि कुत्तों की वफ़ादारी बदल जाती है जब चोर उसको खाने को हड्डी डालते हैं। इधर सत्तधारी नेताओं ने मीडिया को पालना शुरू कर दिया है जो सत्ता के सामने दुम हिलाते तलवे चाटते हैं और विरोधी पर भौंकते हैं। ये विदेशी नसल के कुत्ते लगते हैं और देसी भाषा में भौंकते हैं। जाने कितने लोग देश का धन क़र्ज़ लेकर भाग गए विदेश और हम देखते रहे कुछ नहीं कर सके।
पहली बार कोई अमीर उद्योगपति कंगाल होने की बात स्वीकार कर पड़ोसी देश के बैंक को पैसा लौटने से इनकार कर रहा है तब लोग उसको भरत रत्न देने की बात करते हैं उनके लिए ये भी गैरव की बात है कि जिस दुश्मन से देश की सरकार कितनी योजनाओं में साथ रखती है उसे कमाने देती है और ठगी जाती है दोस्ती भाईचारे के जाल में मगर कुछ समझ नहीं पाती क्या करे आगे कुंवां पीछे खाई वाली दशा है , कोई सरकार का खास अमीर उसको चपत लगाने का काम कर गया है।

     आपको ये बताना ज़रूरी था क्योंकि कुछ लोग जो आज सत्ता में हैं पचास साल पहले के शासक को हर बात का दोष देकर समझते हैं बड़ी अच्छी बात करते हैं। जिस बुनियाद पर खड़े हैं ये उनकी ही खड़ी की हुई है मुमकिन है जिनका गुणगान करते हैं ये लोग उन्होंने इस बुनियाद को उखाड़ने और देश की ऊंची ईमारत को बर्बाद करने को तमाम कोशिशें की हों। और जिनको ऐसे लोग महान मानते हैं उनकी किसी बात का कोई भरोसा ही नहीं है उनके ब्यान बदलते भी हैं तो भी नहीं सोचते कि इनका सच क्या है।
सच बताते नहीं छिपाते हैं और झूठ को सच से बड़ा साबित करते हैं तब भी ये लोग देश नहीं दल और नेता की हद से बढ़कर चाटुकारिता करते हुए अपनी देशभक्ति को ही शर्मसार करते हैं। उनको देश की बर्बादी की चिंता नहीं है कोई बर्बादी की चर्चा करता है ये उनको अच्छा नहीं लगता है।
सावन के अंधे हैं उनको हर तरफ हरियाली दिखाई देती है। इतिहास से सबक लेते तो गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले से प्यार की पींग में झूला झूलने की गलती नहीं करते जो किसी का वफ़ादार नहीं उस की वफ़ा की उम्मीद वही करते हैं जिनको वफ़ा का अर्थ नहीं मालूम होता है।
आजकल बड़े बड़े पद पर लोग शपथ संविधान की खाकर भी वफ़ादारी किसी नेता या दल या कोई संस्था किसी संगठन के लिए रखते हैं। पुलिस अधिकारी आतंकवादी लोगों को पैसे लेकर उधर से इधर पहुंचाने का काम करते पकड़ा जाता है मगर पुलिस तीन महीने बाद भी अदालत में केस दर्ज नहीं करवाती और उसको ज़मानत मिल जाती है।

जनाब बताते हैं कोरोना से दुनिया के लोग योग से फायदा उठा रहे हैं। कोई आधार नहीं किसी ने कोई दावा साबित नहीं किया बस यारी है निभानी है योग से किसी को फायदा हुआ है तो उसी को जिसने योग को बेचा है बाज़ार लगाकर मालामाल हो गया है। योग करना नहीं आपको योग को बेचना सीखना होगा या फिर देशभक्ति को भी दलगत राजनीति का जुमला जिस का शोर करना है देश की खातिर करना कुछ भी नहीं।

सच से नज़र छिपाते हैं झूठ को गले लगाते हैं अच्छे दिन की बात नहीं करते रोज़ तमाशे दिखलाते हैं। भगवान इनको माफ़ करना ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं कहना चाहते हैं मगर सवाल फिर देश की अदालत का सामने है क्योंकि वही तय करती है भगवान माफ़ नहीं करेगा और बाद में भगवान को भूल जाती है आदेश जारी कर देती है। भगवान कोई पुनर्विचार याचिका दायर नहीं कर सकते उनका अधिवक्ता कोई नहीं है।

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