सुंदर पिचाई पर कोई फिल्म क्यों नहीं बनाता…!!

तारकेश कुमार ओझा। 80 के दशक में एक फिल्म आई थी, नाम था लव – मैरिज। किशोर उम्र में देखी गई इस फिल्म के अत्यंत साधारण होेने के बावजूद इसका मेरे जीवन में विशेष महत्व था। इस फिल्म के एक सीन से मैं कई दिनों तक रोमांचित रहा था। क्योंकि फिल्म में चरित्र अभिनेता चंद्रशेखर दुबे एक सीन पर मेरे शहर खड़गपुर का नाम लेते हैं। पेसों की तंगी और परिजनों की डांट – फटकार की परवाह किए बगैर सिर्फ अपने शहर का नाम सुनने के लिए मैने यह फिल्म कई बार देखी थी। क्योंकि इससे मुझे बड़ा सुखद अहसास होता था। वैसे मैने सुन रखा था कि महान फिल्मकार स्व,सत्यजीत राय समेत कुछ बांग्ला फिल्मों में खड़गपुर के दृश्य फिल्माए जा चुके हैं।

लेकिन तब मैने सोचा भी नहीं थी कि कालांतर में मेरे शहर को केंद्र कर कभी कोई फिल्म बनेगी और उसकी यहां शूटिंग भी कई दिनों तक चलेगी। भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे सफल कप्तान माने जाने वाले महेन्द्र सिंह धौनी पर बन रही फिल्म की शूटिंग देख हजारों शहरवासियों के साथ मुझे भी सुखद आश्चर्य हुआ। बेशक उस कालखंड का गवाह होने की वजह से मैं मानता हूं कि धौनी की फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी बिल्कुल किसी परीकथा की तरह है। कहां लेबर टाउन कहा जाने वाला खड़गपुर जैसा छोटा सा कस्बा और कहां क्रिकेट की जगमगाती दुनिया।

एक नवोदित क्रिकेट खिलाड़ी के तौर पर उनके रेलवे की नौकरी के सिलसिले में शहर आने से लेकर कुछ साल के संघर्ष के बाद टीम में चयन और सफलता के शिखर तक पहुंचने का घटनाक्रम काफी हैरतअंगेज है। जिसकी वजह से धौनी व्यक्ति से ऊपर उठ कर एक परिघटना बन चुके हैं। उन पर बन रही फिल्म के बहाने जीवन में पहली बार किसी फिल्म की शूटिंग देख मेरे मन में दो सवाल उठे। पहला यही कि किसी फिल्म को बनाने में बेहिसाब धन खर्च होता है। जितने की कल्पना भी एक आम – आदमी नहीं कर सकता।

दूसरा यह कि अपने देश में राजनीति , फिल्म और क्रिकेट के सितारे ही रातों – रात प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच कर वह सब हासिल करने में सक्षम हैं, जिसकी दूसरे क्षेत्रों के संघर्षशील लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। मेरे मन में अक्सर सवाल उठता है कि क्या वजह है कि मेरे शहर के वे खिलाड़ी हमेशा उपेक्षित ही रहे , जो अपने – अपने खेल के धौनी है। क्रिकेट की बदौलत जीवंत किवंदती बन गए धौनी के आश्चर्यजनक उड़ान पर हैरान होते हुए मैं अक्सर सोच में पड़ जाता हूं कि यदि बात सफलता की ही है तो उन सुंदर पिचाई पर कोई फिल्म क्यों नहीं बनाता जो इसी शहर के आइआइटी से पढ़ कर आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

जबकि उनकी उपलब्धि का दायरा कहीं अधिक व्यापक है। बेशक किसी की उपलब्धि को कम करके आंकना मेरा मकसद नहीं लेकिन यह सच है कि देश के लिए खेलने के बावजूद एक खिलाड़ी की उपलब्धियां काफी हद तक व्यक्तिगत ही होती है, जबकि इंटरनेट जैसे वरदान ने आज छोटे – बड़े और अमीर – गरीब को एक धरातल पर लाने का काम किया है। आइआइटी कैंपस जाने का अवसर मिलने पर मैं अक्सर ख्यालों में डूब जाता हूं कि इसी कैंपस में रहते हुए सुंदर पिचाई जैसे आइआइटीयंस ने पढ़ाई पूरी की होगी। जीवन के कई साल इसी शहर में उन्होंने गुजारे होंगे। कोई नीरज उनकी सफलता को अनटोल्ड स्टोरी के तौर पर रुपहले पर्दे पर उतारने की क्यों नहीं सोचता ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

6 + sixteen =