विनय सिंह बैस की कलम से… “जब पापा हमसे मिलने हैदराबाद आये थे”

नई दिल्ली । 2004 की बात है!! मैं उस समय हैदराबाद में था और क्रिकेट

सुंदर पिचाई पर कोई फिल्म क्यों नहीं बनाता…!!

तारकेश कुमार ओझा। 80 के दशक में एक फिल्म आई थी, नाम था लव –

या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझको अभी चुप रहने दो

कहो भी क्या कहना है, अब बोलते क्यों नहीं। नानी मर गई है क्या? ये

शीश झुकाता हूँ सरल हो जाता हूँ

मस्तिष्क सबमें उठक-बैठक करता है। करतब दिखाता रहता है। ज्ञानी होने का आकर्षण सबको बाँधता

बुलंदी से नीचे गिरने का भय ( डरावना ख़्वाब )

बात इज्ज़त के सवाल की होती है तब ऑनर किलिंग के नाम पर घर परिवार

सहायता का दिखावा बंद कर आम नागरिकों को राहत पहुँचाये सरकार

राज कुमार गुप्त, कोलकाता : वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से सरकारी नौकरी करने वालों को

एक रुपये की इज़्ज़त का सवाल

इधर लोग अपनी इज़्ज़त की बात लाखों नहीं करोड़ों में करने लगे थे। मानहानि के