23 दिसम्बर : राष्ट्रीय किसान दिवस पर विशेष…

हे ग्राम-देवता! तू धरती-पुत्र, तू हलधर वीर हो,
पत्थरों को चीर उसमें नित नये अंकुर उगाते हो।
सुख-साधनों से दूर रह, तुम जग के उदर भरते हो,
तुम्हारी शक्ति-भक्ति खेती, उसी में तल्लीन रहते हो।
अभावों में रहकर तुम, जग के तारण कहलाते हो,
तुम्ही सृजन कर्ता व पालक, तुम्ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश हो।

श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता : “राष्ट्रीय किसान दिवस” के पावन अवसर (23 दिसम्बर) पर आप सभी किसान भाइयों सहित समस्त देश वासियों को लहलहाते हरीतिमा युक्त हार्दिक बधाई। भारत के पाँचवें पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ‘किसानों का मसीहा’ भी कहा जाता है। अतः चौधरी चरण सिंह की जयंती 23 दिसंबर को ही ‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। आज देश के तमाम किसानों को धन्यवाद ज्ञापन करने का दिन है, क्योंकि आज ‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ है, जिसका प्रचलन सन् 2001 से देश भर में हुआ है। किसान ही किसी भी देश की प्रगति के ‘धुरी’ हुआ करते हैं।

जीवन की रक्षा के लिए सुंदर कपड़ों और आलिशान महलों की अपेक्षा उदर की पूर्ति आवश्यक होता है, जो कीमती धातुओं या फिर रुपयों को चबा कर पूर्ति नहीं हो सकता है, इसके लिए अन्न पदार्थों की आवश्यकता होती है, जो हमें किसानों के खून-पसीनों के एवज में ही प्राप्त होते हैं। किसान न केवल देश को अपने खाद्यानों से समृद्ध करते हैं, बल्कि देश की हर प्रगति के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कारक होते हैं।

हमारे जीवन में किसानों का एक अलग ही महत्व है, हमारी थाली में परोसे गए भोजन सामग्री उसी अन्नदाता किसान की मेहनत का ही फल है, जो वर्ष भर मिट्टी में अपने खून-पसीनों को बहाकर अन्न उगाने के कठोर परिश्रम का कार्य करते हैं। बैलों के साथ अपने कन्धों पर हल को धारण किये हुए अधनंगे किसान त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति तो होते ही हैं, उनमें ही सृजनकर्ता ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु और विषपानकर्ता महेश की अद्भुत त्रिदेवत्व शक्ति निहित हैं।

उनमें आजीवन मिट्‌टी से सुनहली फसलों को उत्पन्न करने के लिए महर्षि दधीचि की कठोर हड्डियों का तेज निहित है। उनकी तपस्या अटल है, जिसे तपती धूप, कड़ाके की सर्दी तथा मूसलाधार बारिश भी तोड़ नहीं पाते हैं। भारत की वास्तविक आत्मा किसान है जो दिल्ली जैसे विकसित शहरों में नहीं, बल्कि गाँवों में टूटी-फूटी झोपड़ियों में निवास करते हैं । डॉ. राम कुमार वर्मा ने भारतीय किसानों के सही चित्र अंकित करते हुए कहा है –
अधखुले अंग जिनमें केवल है कसे हुए कुछ अस्थि-खण्ड,
जिनमें दधीचि की हड्डी है, यह वज्र इन्द्र का है प्रचण्ड!
जो है गतिशील सभी ऋतु में गर्मी वर्षा हो या कि ठण्ड,
झोपड़ी झुकाकर तुम अपनी ऊँचे करते हो राज-द्वार!
हे ग्राम देवता! नमस्कार!

किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के हापुड़ के नूरपुर नामक ग्राम में हुआ था। वह स्वयं किसान परिवार से सम्बन्धित थे और वह ग्रामीण समस्याओं तथा खेती सम्बन्धित समस्यायों को गहराई से समझते थे। उन्होंने किसान सेवा जैसे अपने नैतिक मूल्यों को अपने पिता मीर सिंह से विरासत के रूप में प्राप्त कर किसानों, पिछड़ों और ग़रीबों की सेवा हेतु राजनीति की। उन्होंने सर्वदा खेती और गाँव को महत्व दिया। उनकी नीति किसानों व ग़रीबों को ऊपर उठाने की थी। उनका मानना था कि बगैर किसानों को खुशहाल किए देश व प्रदेश का विकास असम्भव है। भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मज़दूर, ग़रीब आदि सभी खुशहाल होंगे। किसानों की खुशहाली उन्नत खेती से ही हो सकती है।

उनके उपज के लिए उचित उपाय हो और उन्हें उपज का उचित दाम मिल सके, इसके लिए भी वह गंभीर थे। आज़ादी के बाद चौधरी चरण सिंह पूर्णत: किसानों के हक के लिए राजनीतिक लड़ाई लड़ने लगे। उनकी मेहनत के कारण ही ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक” साल 1952 में पारित हो सका। इस एक विधेयक ने सदियों से खेतों में ख़ून-पसीना बहाने वाले किसानों को खुशहाल जीने का मौका प्रदान दिया। दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरी चरण सिंह ने प्रदेश के 27000 पटवारियों के त्यागपत्र को स्वीकार कर ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में और केन्द्र में वित्तमंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह ने मौका मिलते ही किसानों के हितार्थ भूमि सुधारों सम्बन्धित बहुत काम किया। किसानों के लिए अलग-अलग कई हितकारी कार्य किए, जो किसानों को जमीदारों की शोषण नीति से लड़ने में मदद करती थी। क्योंकि पहले जमीदार किसानों को उनके उपज के बदले कम से कम पैसा अदा करते थे और स्वयं उसे महँगे दामों में बेचकर बेहिसाब लाभ कमाते थे। उन्होंने अपने हर बजट में गाँवों और किसानों को ही केंद्र में रखा और सर्वदा किसानों के साथ कृतज्ञता से पेश आने के लिए अपने अधिकारियों को हिदायतें दीं। अतः आज भी “राष्ट्रीय किसान दिवस” के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है।

देश में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने भी किसानों को ही देश का ‘सरताज’ माना था। लेकिन देश की आज़ादी के बाद से ऐसे नेता कम ही देखने को मिले, जिनमें किसानों के प्रति सच्चा प्रेम और उनसे सम्बन्धित कृषि कार्य के लिए विकास की सही चाहत हो। हमारे देश के किसान भाई ही आधुनिक पालनकर्ता विष्णु है, जो निरंतर कर्मठता की भाव-भूमि पर खड़े होकर अन्न, फल, साग, सब्जी आदि देते हैं, लेकिन उसके बदले में उन्हें उनका सही पारिश्रमिक तक प्राप्त नहीं हो पाता है। प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन प्रेमचन्द के ‘होरी’ और ‘हल्कू’ के समान ही सदैव अभावों में ही गुजर-वसर कर टूट-बिखर रहे हैं।

किसानों की अवनति के पीछे उनके मन में व्याप्त जातिप्रथा, अशिक्षा, परम्परागत कृषि विधि के प्रति आसक्ति आदि कई बड़े कारण रहे हैं, जिन्हें दूर कर किसानों में बराबरी व संपन्नता को लाया जा सकता है, जिससे राष्ट्र की आर्थिक और मानवीय शारीरिक समृद्धि हो सकती है। किसानों का देश की प्रगति में उतना ही महत्व है, जितना देश की बाह्य रक्षा के लिए कोई सैनिक का। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का विचार था कि देश की सुरक्षा, सुख-समृद्धि और आत्मनिर्भरता केवल सैनिकों और शस्त्रों पर ही आधारित नहीं, बल्कि किसानों और श्रमिकों पर भी आधारित है। अतः उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा सारे देश को दिया। कवि महावीर प्रसाद ‘मधुप’ के शब्दों में हम भी यही कहेंगे –
ओ भारत के कर्मठ किसान! तुम भूमि-पुत्र कहलाते हो,
श्रम की पूजा में ही अपने जीवन की भेंट चढ़ाते हो।
सैनिक लड़ता समरांगण में, तुम उसे सशक्त बनाते हो,
पोषण कर सबके प्राणों का, अपना कर्त्तव्य निभाते हो॥
तुम ध्यान यही रखते हरदम महफ़ूज वतन की रहे शान।
जय-जय जवान, जय-जय किसान॥

आज भी किसान भाई बहुत ही मेहनत और लगन के साथ कठोर मिट्टी से अनाज को उगाते हैं, खेतों में समय समय पर खाद डालना, पानी सीखना, खरपतवार निकालना, कीड़ा मकोड़ा से बचाना आदि समस्याओं का सामना करते हैं। पर उन्हें अपनी उपज का सही मूल्य प्राप्त नहीं हो पता है। बड़े-बड़े सेठ-साहूकार, दलाल, दूकानदार आदि उनके उपज को कम रुपए में खरीद लेते हैं। फलतः आज भी किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई बहुत सुधार नहीं हुए हैं । कई बार बाढ़ और सुखा पड़ने के कारण किसानों की फसल खराब हो जाती है।

ऐसे दुखद स्थिति को देख कर कई बार किसान सहन नहीं कर पाता है और आत्महत्या की ओर बढ़ जाते हैं। ऐसे आवश्यक है सरकार और समृद्ध जनों को किसानों के पक्ष में आगे बढ़ने की, जो उनके दुःख को कम कर सकें। भारत सरकार द्वारा भी किसानों के हित के लिए तथा उनको प्रोत्साहन देने के लिए अलग अलग योजनाओं को लागू किया गया है। हमें भी आज “राष्ट्रीय किसान दिवस” के अवसर पर अपने किसान भाइयों के हितार्थ कुछ कार्य करने का शपथ लेना चाहिए, तभी “राष्ट्रीय किसान दिवस” की यथार्थता बनी रहेगी।

श्रीराम पुकार शर्मा

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