मैं किसी अघोषित कविता की
घोषित पात्र हूं
मेरी उद्घोषणा के लिए ईश्वर ने एक डॉक भेजा था
गलत पते के साथ
ईश्वर से भी होती है गलतियां
पहली बार पता चला
ओस सुबह जब धान के पत्तों पर सोई रहती है
अलसाई – सी
पत्तों पर लुढ़का अनगिनत ब्रह्मांड
सहसा कौध जाता है
अवचेतन में
अनगिनत ब्रह्मांड के
अनगिनत ईश्वर
और मेरे सही पते पर न पहुँचा
आजतक कोई खत
अपने हिस्से के खत के इंतजार में
किसी भी अघोषित कविता की
घोषित पात्र…
सनातन से ड्योढी पर बैठी
इंतजार के घूंट पी रही
सूरज जब उसकी थाली में आया था
और दे गया था इंतजार चांद का
हर रोज चांद आता है थाली में
फिर रोटी बन जाता है
कोरों पर लुढ़कती दो बूंदे
दो ब्रह्मांड लगती हैं उसे
और वह ढूंढती है
इतने ब्रह्मांडों में
अपने हिस्से का ईश्वर
उसके हिस्से में आया है इंतजार
ईश्वर का, भूख का, प्रेम का
ड्योढी के अन्दर
अंधेरे के झुरमुट में कैद है
इंतजार का एक कोना
हमेशा खाली ही रहता है।
उम्मीद है उसे
आएगा कभी कोई खत उसके सही पते पर……!!!
सरिता अंजनी सरस