श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’ की कविता : जी हां, मैं आम आदमी हूं
*# जी हां, मैं आम आदमी हूं #* उस दिन चाय की दुकान पर हो
कवि. हीरा लाल मिश्र की कविता : बेटी आई है
बेटी आई है। ********** पोपले मुख पर मोटे लेन्स का चश्मा झुर्रियों से भरा शरीर
गोपाल नेवार की कविता : “ज़िन्दगी”
“ज़िन्दगी” ऐ ज़िन्दगी है यारों कठिन है राहें यारों । आसान नहीं मंजिल पाना कभी
जीना इसी का नाम है (कहानी) :– श्रीराम पुकार शर्मा
अद्भुत जीवट पौधा है यह, जहाँ कोई पल भर भी टिकने के नाम से ही
समय का मोल…!! (कहानी) :– अमितेश कुमार ओझा
कड़ाके की ठंड में झोपड़ी के पास रिक्शे की खड़खड़ाहट से भोला की पत्नी और
करोड़पति खेलने का ख़्वाब ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया
विषय शोध का लगा मुझे भले ये खेल मुझे खेलना नहीं आता और मैंने हमेशा
दुर्गेश वाजपेयी की कविता : “हे कश्मीर!”
“हे कश्मीर!” हे! कश्मीर तेरी बात क्या करें हम अब, तू खुद ही खुद में
बेगुनाही की सज़ा मिलती है ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया
काली रात के अंधेरे में सुनसान वीरान जगह उन सभी बड़े बड़े लोगों की दुनिया
दुर्गेश वाजपेयी की कविता : “अभिशाप बना है”
“अभिशाप बना है” निस्तब्धता से उगा वेग कहाँ देखा? मन में उठे ज्वाला सा तेज
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स्वाति मिश्रा की कविता : “सूरत बनाम सीरत”
“सूरत बनाम सीरत” आइने ने कहा इक दिन, “क्यूं सिर झुकाए बैठी हो? ज़रा मेरी
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