रणभूमि
वीरों का रण सजा है
रणचंडी के आवाह्न पर,
दस-दस पर एक है भारी
शत्रुदल की सेना पर।
युद्ध ने अब स्वयं चुना है
बागी दल के वीरों को,
हमने युद्ध नहीं चुना है
तुमने हमको ललकारा है।
ललकार पर बाहर ना आना,
क्षत्रित्व को यह स्वीकार नहीं।
कुरुक्षेत्र की इस धरा को
वीरों का रक्त ही भाता है,
जो रक्तरंजित ना हो
वह कुरुक्षेत्र कहां
कहलाता है।
रणभेरी यदि बज ही गई तो
युद्ध से पीछे हटना क्या,
आत्मा शत्रुदल की कांप उठे
युद्ध इतना भयावह हो।
उठाओ शस्त्र बांधो भगवा
रक्त बहा दो असुर अधर्मियों का।।
अर्जुन अज्जू तितौरिया
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