पारो शैवलिनी की गजल : तुम्हें जब से
तुम्हें जब से छाया है नशा मुझपे देखा है तुम्हें जबसे, काबू में नहीं दिल
फागुन की जीत से रंगे गोपाल चन्द्र मुखर्जी और डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
-होली पर २८ वीं लेखन स्पर्धा:डॉ. पूनम अरोरा व बोधन राम निषाद राज ने मुकाबले
गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा की कविता : कोरोना वायरस
कोरोना वायरस ************* क्या-क्या गज़ब का खेल दिखाया है तूने वो कोरोना वायरस, वर्षों से
दुर्गेश बाजपेयी की कविता : आकांक्षा
आकांक्षा तुम ही हो ज्वाला सी सघन, तुम में हैं मटमैली कलमें, तुम ही तेज
श्रीराम पुकार शर्मा का निबंध : गोबर संस्कृति
‘गुड़ गोबर करना’ क्या सचमुच ही किसी विशेष वस्तु को नष्ट करने के अर्थ में
वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये (ग़ज़ल) : डॉ लोक सेतिया “तनहा”
“तनहा” वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये झूठ के साथ वो लोग खुद
डीपी सिंह की कुण्डलिया
सामयिक कुण्डलिया लंगोटी में एक ही, ढक लो तन श्रीमान। आह्वान पर चेलियाँ, लीं मन
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया ————– जनता के दुख-दर्द को, खूँटी पर दो टाँग। वोट चोट पर माँग लो,
अर्जुन तितौरिया की कविता : चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की
चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की कौशल्या दशरथ नंदन
डीपी सिंह की कुण्डलिया
पर उपकारी अङ्ग है, कान बहुत ही नेक। आँखें जब कमज़ोर हों, दे ऐनक को