पारो शैवलिनी की गजल : तुम्हें जब से

तुम्हें जब से

छाया है नशा मुझपे
देखा है तुम्हें जबसे,
काबू में नहीं दिल है
चाहा है तुम्हें जबसे।।

तस्वीर कोई हुस्न की
भाती नहीं हमको,
बड़े प्यार से इस दिल में
बिठाया है तुम्हें जबसे।।

आंखें तेरी गजल है
और होंठ रुबाई,
हर अंग को चूमा है
सराहा है तुम्हें जबसे।।

अब खौफ नहीं मुझको
अंजामे-मुहब्बत का,
पूजा है मुहब्बत को
पाया है तुम्हें जबसे।।

पारो शैवलिनी

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