राहे-वतन में इश्क़ का कुछ अलहदा अंदाज़ है
शाह-ए-जहां हर इक सिपाही, मौत ही मुमताज़ है
भर ले न जाने कब उसे बेदर्द वो आगोश में
सोचें, कहाँ फ़ुरसत, जिन्हें ताज-ए-वतन पर नाज़ है
डीपी सिंह
राहे-वतन में इश्क़ का कुछ अलहदा अंदाज़ है
शाह-ए-जहां हर इक सिपाही, मौत ही मुमताज़ है
भर ले न जाने कब उसे बेदर्द वो आगोश में
सोचें, कहाँ फ़ुरसत, जिन्हें ताज-ए-वतन पर नाज़ है
डीपी सिंह