जिनसे उम्मीद थी, खाइयाँ पाटते
रह गए वो वतन छाँटते-काटते
बाँटते जातियों में किसी वर्ग को
और तलवे किसी के रहे चाटते
-डीपी सिंह
जिनसे उम्मीद थी, खाइयाँ पाटते
रह गए वो वतन छाँटते-काटते
बाँटते जातियों में किसी वर्ग को
और तलवे किसी के रहे चाटते
-डीपी सिंह