चुनाव अध्यक्ष का ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

हम शांति पूर्वक घर के अंदर बैठे हुए थे कि तभी बाहर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आने लगी। श्रीमती जी देखने गई कि इतनी आवाज़ें किसलिये हो रही हैं। और तुरंत घबरा कर वापस भीतर आ गई और कहने लगी कुछ ख्याल भी है कि बाहर क्या हो रहा है। हमने पूछा ये इतना शोर क्यों है , लगता है गली से बाहर का कोई कुत्ता आया होगा, और अपनी गली के सारे कुत्ते उस पर भौंकने लगे होंगे।

श्रीमती जी बोली आप बाहर निकल कर तो देखो यहां अपने घर के सामने वाले पार्क में सारे शहर के कुत्ते जमा हो गये हैं और वे एक दूसरे पर नहीं भौंक रहे , जो आदमी उनको भगाने का प्रयास करे उसको काटने को आते हैं। अपना टौमी भी उनके बीच चला गया है , ऐसे आवारा कुत्तों में शामिल हो कर वो भी आवारा न बन जाये , उसको बुला लो। घर से बाहर निकल कर हमने जब अपने टौमी को आवाज़ दी तो पार्क में जमा हुए सभी कुत्ते हमारी तरफ मुंह करके भौंकने लगे।

जब हमने देखा कि हमारा टौमी भी उनमें शामिल ही नहीं बल्कि हम पर भौंकने में सब से आगे भी है तो हम घबरा गये। तब हमें कुत्तों के डॉक्टर की बात याद आई कि अगर कभी टौमी कोई अजीब हरकत करे तो तुरंत उसको सूचित करें। हमने तभी उनसे फोन पर विनती की शीघ्र आने की और वे आ गये। आते ही सीधे वे उन कुत्तों की भीड़ में चले गये और उनको देख कर कोई कुत्ता भी नहीं भौंका सब के सब खामोश हो गये।

जैसे बच्चे चुप हो जाते हैं अध्यापक को देखकर। हम दूर से देख कर हैरान थे और वे एक एक कर हर कुत्ते को पास बुलाते और उसके साथ कुछ बातें करते इशारों ही इशारों में। हम कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे मगर लग रहा था उनको मालूम हो गया है क्या माजरा है। थोड़ी देर बाद डॉक्टर साहब ने आकर बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है , आपका टौमी और बाकी सभी कुत्ते तंदरुस्त हैं। आज उनकी एक विशेष सभा है।

हमने उनकी फीस दी और उनसे पूछा कि ये कैसी सभा है , ऐसा तो पहले नहीं देखा कभी भी हमने। उन्होंने बताया कि वे कुत्तों की भाषा को समझते हैं और हमें बता सकते हैं कि आज क्या क्या हो रहा है इस सभा में। वे कुत्तों से बातें करते रहे हैं और आज उन सब ने बताया है कि यहां आज शहर के कुत्तों ने अपना प्रधान चुनना है।

डॉक्टर साहब ने बताया हमें जो जो भी बातें आपस में कर रहे थे सब कुत्ते। कई कुत्ते चाहते हैं प्रधान बनना और वो अपना अपना दावा पेश कर रहे हैं। आप विश्वास रखें उनमें कोई लड़ाई नहीं हो रही है , हर कोई अपनी बात रख रहा है और सब की बात सुनी जा रही है।  जिसको भी ज़्यादातर सदस्य पसंद करेंगे वही प्रधान घोषित कर दिया जायेगा , प्रयास है कि चुनाव सभी की सहमति से ही हो। कोई वोट नहीं , बूथ कैप्चरिंग नहीं ,जात पाति , रिश्ते नातों का कोई दबाव नहीं , न ही कोई प्रलोभन , सब खुले आम पूरे लोकतांत्रिक ढंग से हो रहा है। जो बातें उन्होंने देख कर बताई वो वास्तव में दमदार हैं ज़रा आप भी सुनिये।

सब से पहले शहर के प्रधान का कुत्ता बोला कि उसको ही प्रधान बनाया जाना चाहिये। जब तुम सभी के मालिकों ने मेरे मालिक को अपना प्रधान चुना है तो तुम सब को वही करना चाहिये , शहर के प्रधान का कुत्ता होने से मेरा हक बनता है प्रधानगी करने का। इस पर कई सदस्यों ने सवाल उठाया कि शहर वाले तो हमेशा प्रधान चुनने में गलती कर जाते हैं और जिसको समझते हैं काम करेगा वो किसी काम का नहीं होता है। प्रधान बनने के बाद सारे वादे भूल जाता है और कुर्सी को छोड़ने को तैयार नहीं होता चाहे लोग न भी चाहते हों।

प्रधान का कुत्ता बोला कि मैं ऐसा नहीं करूंगा , जब भी कहोगे हट जाउंगा , मैं कुत्ता हूं आदमी जैसा नहीं बन सकता। तब एक सदस्य ने सवाल उठाया कि तुमने अपना धर्म नहीं निभाया था , जब तुम्हारे मालिक के घर में चोरी हुई थी तब तुम भौंके ही नहीं। प्रधान के कुत्ते ने कहा ये सच है कि मैं नहीं भौंका था लेकिन तुम नहीं जानते कि ऐसा इसलिये हुआ कि प्रधान के घर से जो माल चोरी गया वो माल भी चोरी का था और उसको जो चुराने वाले थे वो भी प्रधान के मौसेरे भाई ही थे। इस पर पुलिस वाले का कुत्ता खड़ा हो कर बोला हम सभी को अपनी सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिये, आजकल चोर चोरी से पहले कुत्ते को जान से मारने का काम करने लगे हैं, हमें पुलिस से रिश्ता बनाना चाहिये ताकि वो हमारी सुरक्षा कर सके। तब एक सदस्य ने कहा क्या हम पुलिस पर यकीन कर सकते हैं ,पुलिस खुद चोरों से मिली रहती है।

जान बूझकर चोरों को नहीं पकड़ती है , उनसे रिश्व्त लेकर चोरी करने देती है। तब पुलिस के कुत्ते को क्रोध आ गया और वो बोला था , और तुम खुद क्या करते हो। तुम्हारा मालिक जनहित का पैरोकार बना फिरता है और सब से फायदा उठाता रहता है ये क्या मुझसे छुपा हुआ है। इस बीच शहर के बड़े अधिकारी का कुत्ता खड़ा हो गया और बोला आप सभी ख़ामोशी से ज़रा मेरी बात सुनें।

जब सब चुप हो गये तो वो पार्क के बीच में बने चबूतरे पर खड़ा हो लीडरों की भाषा में बातें करने लगा। कहने लगा मैं ये नहीं कहता कि मुझे अपना प्रधान बनाओ , मगर जिसको भी बनाया जाये उसको पता होना चाहिये कि हम सब को क्या क्या परेशानियां हैं। हमारी तकलीफों को कौन समझता है , हम केवल चोरों से घर की रखवाली ही नहीं करते हैं , अपने अपने मालिक के शौक और उनका रुतबा बढ़ाने के लिये भी हमारा इस्तेमाल किया जाता है। मालकिन के साथ कार में , उसकी गोदी में , उसके साथ खिलौना बन कर पार्टियों में जाकर हमें कितनी घुटन होती है , और कितना दुःख होता है सब के सामने उसके इशारों पर तमाशा बन कर। हम क्या उसके पति हैं।

इसके इलावा हम में बहुत सदस्य ऐसे भी हैं जिनके मालिक न भरपेट खाना देते हैं न ही रहने को पूरी जगह ही। हम बेबस जंजीर में जकड़े कुछ भी नहीं कर पाते। हमें जब मालिक बचाव के टीके न लगवायें और हम बीमार हो जायें , तब खुद ही हमें गोली मार देते हैं ये क्या उचित है। आपको पता है कितने मालिक अपने कुत्तों से पीछा छुड़ाने के लिये उसको दूर किसी जंगल में छोड़ आते हैं भेड़ियों के खाने के लिये। और भी बहुत सारी बातें हैं जिनसे हम अनजान ही रहते हैं।

मेरे को यूं भी फुर्सत नहीं है कि प्रधान बन कर ये सब काम करूं, आप किसी को भी अपना प्रधान चुनो मगर वो ऐसा हो जो ये बातें जनता हो समझता हो और इनका समाधान कर सके। सभी कुत्ते तब एक साथ बोले थे कि वो आपके बिना दूसरा कोई हो ही नहीं सकता है। और आला अधिकारी के कुत्ते को प्रधान चुन लिया गया, उसको फूलमाला पहना दी गई।

      अब फिर उसी बात पर आते हैं जहां से चर्चा की शुरआत हुई थी। इक और रचना भी है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

17 − eight =