डीपी सिंह की रचनाएं
सामयिकी नाम पर स्वातन्त्र्य के स्वछन्दता सिखला रहे हैं वो हमारे संस्कारों की जड़ें ही
डीपी सिंह की रचनाएं
सूरत ने निपटा दिया, दावेदार-नरेश गठबन्धन का कट गया, आज राहु का क्लेश आज राहु
डी पी सिंह की रचनाएं
तेल का खेल चलता था जब जेल से, मन्त्रालय का खेल मन्त्री को रेपिस्ट जब,
डीपी सिंह की रचनाएं
आते ही चुनाव गाँव-गाँव में है काँव-काँव आतिशी प्रपंच कहीं खेड़ा का बखेड़ा है आम
डीपी सिंह की रचनाएं
राहे-वतन में इश्क़ का कुछ अलहदा अंदाज़ है शाह-ए-जहां हर इक सिपाही, मौत ही मुमताज़
डीपी सिंह की कुण्डलिया
चमचा चरितम् जग में चमचा नाम का, होता एक चरित्र रहे पात्र के साथ जो,
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया खादी कुर्ता है धवल, नई नवेली कार चाटुकार हैं सङ्ग में, आगे पीछे चार
डीपी सिंह की रचनाएं
नेतृत्व जिनसे उम्मीद थी, खाइयाँ पाटते रह गए वो वतन छाँटते-काटते बाँटते जातियों में किसी
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया फिर से घर में हों वही, एक-नेक परिवार सुगठित स्वस्थ समाज से, जुड़ें सभी
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया मय कुटुम्ब हो आप को, मङ्गलमय नव-वर्ष सकल विश्व में शान्ति हो, पायें सब