हिंदी, हिंदीं दिवस और हिंदी वाले

मेरी ज़िंदगी गुज़री है हिंदी में लिखते लिखते। 44 साल से तो नियमित लिखता रहा

आम राय से फैसला ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया

दो पक्ष बन गये थे और तमाम प्रयास करने पर भी कोई निर्णय हो नहीं

एक रुपये की इज़्ज़त का सवाल

इधर लोग अपनी इज़्ज़त की बात लाखों नहीं करोड़ों में करने लगे थे। मानहानि के

हम जड़ता में जकड़े लोग (तर्कहीन समाज)

दुनिया अनुभव से सबक सीखती है और अनावश्यक अनुपयोगी अतार्किक बातों से पल्ला झाड़कर सही

काला धन से कोरोना तक ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया 

बात दो राक्षसों की कहानी की है कहानी की शुरुआत कुछ साल पहले हुई। हर

आत्मनिर्भरता की पढ़ लो पढ़ाई ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया 

शहंशाह का मूड आज बदला बदला है आज खास बैठक में बात आत्मनिर्भर बनाने की

हैवानियत शर्मसार नहीं

समझते हैं अभी भी दुनिया उन्हीं से है जिनको नहीं खबर आना जाना किधर से

मां ने कहा है बेटा बहु को ले आओ ( कहानी ) : डॉ लोक सेतिया 

चिट्ठी लिखी है मां ने बेटे के नाम। सबसे ऊपर लिखा है राम जी का

सवाल उल्टे – सीधे जवाब सीधे सच्चे

पहला सवाल :- भाजपा नेताओं को लॉक डाउन के नियम से छूट कैसे है। क्या

विकास लापता सुरक्षा घायल ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया

जहां कहीं भी हो देश की व्यवस्था को तुम्हारी तलाश है। खोजने वाले को ईनाम