राकेश कुमार तगाला की कहानी : मंजुला दीदी

।।मंजुला दीदी।।

राकेश कुमार तगाला, पानीपत, हरियाणा । मंजुला दीदी का फोन था? हाँ, मंजुला कैसी हो? घर-परिवार, बाल-बच्चे सब कैसे हैं? ताई जी, सब अच्छे हैं। आप सुनाओ घर पर सारे कैसे हैं? सुधीर की पढ़ाई पूरी हो गई है। हाँ, बेटी सब कुशल-मंगल हैं। सुधीर की पढ़ाई पूरी हो गई। वह बड़े विद्यालय में पढ़ता है। वाह यह तो कमाल हो गया है! पहले वह पढ़ाई से कितना भागता था? हाँ, बेटी तुमने उसका बहुत सहयोग किया था पढ़ने में। ताई जी, मेरे परिवार में शादी हैं। आप सभी को आना होगा। निमन्त्रण-पत्र तो मिल गया होगा आपको। हाँ-हाँ, बेटी कल ही मिला गया था। बेटी, तुम्हें तो पता है मेरा आ पाना कठिन होगा। तुम्हारे ताऊ की तबीयत ठीक नहीं रहती। दवा, पानी का ध्यान रखना पड़ता है। मैं सुधीर को भेज दूंगी। वह तो गाँव की जिंदगी क्या होती है जानता ही नहीं है? कभी गाँव में रहा भी तो नहीं। गाँव के नाम से तो वह दूर भागता हैं बचपन से। पर तू चिंता ना कर, मैं उसे मना लूंगी। अच्छा बेटी, अपना ख्याल रखना। दामाद जी को मेरा आशीर्वाद देना। ताई जी, सुधीर का इंतजार रहेगा। नमस्ते के साथ ही फोन रख दिया मंजुला ने।

मंजुला बहुत सीधी थी। जब इसका ब्याह हुआ। तब वह सोलह साल की थी। उस समय तो जल्दी ब्याह देते थे बेटियों को। बेटियों से पूछते भी नहीं थे, बस हुकुम सुना देते थे। फला-फला तारीख को ब्याह हैं तेरा। कितना बदलाव आ गया है अब दीन-दुनिया में। सुधीर आज मंजुला का फोन आया था। सच में, दीदी तो हमें भूल ही गई है। आज कैसे याद आई हमारी? बेटा ऐसा नहीं कहते। बेटी विवाह के बाद पराई हो जाती हैं। उन पर हमारा बस नहीं चलता और फिर घर परिवार के सौ झंझट होते हैं। तू नहीं समझेगा अभी। जब तेरा घर बस जाएगा ना तब तुझे पता चल जाएगा।

ठीक है माँ देखा जाएगा। अच्छा माँ, दीदी क्या कह रही थी? शादी में बुलाया है। मां तुम ही चली जाना गाँव में। मुझें गाँव की शादी बिल्कुल भी पसंद नहीं है। चुप कर क्या तू अब बच्चा हैं? यह नहीं पसंद वह नहीं पसन्द। क्या गाँव में लोग नहीं रहते? क्या गाँव में सुंदरता नहीं है?गाँव का जीवन तो बहुत सरल होता है। लोग भी भोले होते हैं। दिल के साफ होते हैं। पर माँ साफ-सफाई के नाम पर गाँव में चारों तरफ गोबर के ढेर लगे होते हैं। सड़कों पर भी गंदगी के ढेर। मैं कैसे रह पाऊंगा वहाँ पर? ऐसे कुछ नहीं है, बेटा अब गाँव पहले जैसे नहीं रहे। वहाँ भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है। पक्की नालियाँ बन गई हैं। सड़कें भी कमाल की हैं! गाँव में स्कूल, कॉलेज खुल गए हैं। वहाँ पर शिक्षा का भी खूब प्रसार हो रहा है। अब गाँव और शहर बराबर हो गए हैं। खाक बराबर हो गए हैं, माँ। उनका अकड़पन कभी बदलने वाला नहीं है। चुप कर मैंने कह दिया हैं ना। कल जाना है तुम्हें, तैयारी कर लो समझे। माँ की बात काटने की हिम्मत नहीं थी सुधीर में।

वह अपने कमरे में बैठकर सोचने लगा। जाना तो पड़ेगा ही। जल्दी ही भाग कर आ जाऊंगा, पर मंजुला दीदी को बहुत बुरा लगेगा। उन्होंने मेरी बहुत मदद की थी। मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता था। पिताजी भी हार मान गए थे। हमेशा कहते थे कि यह नालायक कहाँ से इस घर में पैदा हो गया है? यह तो परिवार का नाम डुबोकर ही कर ही मानेगा। इसके अध्यापक भी इससे बड़े परेशान रहते हैं। यह किसी की बात नहीं मानता। पढ़ाई के नाम पर तो इसे सांप डस लेता है। मैंने तो मुख्यध्यापक को कह दिया है इसकी खाल खींच लो अगर ना पढ़े तो। घर पर सभी मेरा मजाक उड़ाते थे। बेटा अनपढ़ ही रहेगा, फिर इसे गाँव ही भेज देंगे। वहाँ गाय-भैंस चराना सारा दिन खेतों में तभी सुधरेगा तू।

मंजुला दीदी ने बड़े प्यार से समझाया था मुझें। क्या तुम गाँव में रहना चाहते हो? गाँव का जीवन बहुत कठिन होता है। मेरे भाई समझदार बनो और यह अंग्रेजी तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ती। अंग्रेज तो चले गए और अंग्रेजी छोड़ गए हमारे लिए। दीदी ने बहुत डांटा था कान पकड़ कर। यह सब ना पढ़ने के बहाने हैं तुम्हारे, मैं पढाऊँगी तुम्हें, फिर तो दीदी मेरे पीछे ही पड़ गई थी।धीरे-धीरे मेरी पढ़ाई में रुचि बढ़ने लगी। दीदी का मार्गदर्शन मेरे लिए वरदान साबित हुआ। मेरी पढ़ाई की रुचि देखकर पिताजी भी हैरान थे। घर में सभी मंजुला दीदी की तारीफ करते नहीं थकता था। पिताजी ने मेरा दाखिला बड़े स्कूल में करवा दिया। अंग्रेजी माध्यम में, स्कूल का माहौल देखते ही बनता था। जैसा स्कूल हम फिल्मों में देखते हैं।

स्कूल में पूरी तरह शिष्टाचार था। बैठने का ढंग, चलने-फिरने का ढंग। खाने-पीने का ढंग। सभी कमाल का था। धीरे-धीरे ही सही मैं भी पूरे माहौल में घुल-मिल गया। जब स्कूल पहुंचने में अक्सर देर हो जाती तो पिताजी ने मुझें होस्टल में दाखिल कर दिया। अब तो दो-तीन महीने में ही घर आ पाता था या कोई तीज-त्यौहार खासकर होली-दीवाली पर घर आता था। अब दीदी से मिलना भी कम हो जा रहा था। पर जब भी मिलता मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहता था। मैं हमेशा उनके पैर छू लेता। बड़ी बहन के नाते कम, गुरु होने के नाते अधिक। वही तो मेरी असली गुरु थी। उन्होंने ही तो मेरे लिए पढ़ना-लिखना आसान बना दिया था।वरना मैं गाँव में ही गाय-भैंस चरा रहा होता।

ओह, तैयारी भी तो करनी हैं कल दीदी से मिलने की। शादी तो बहाना है मुझें तो अपनी दीदी से खूब सारी बातें करनी है। उन्हें बताऊंगा भी कि मैं शहर में अध्यापक हूँ। यह सब उनके मार्गदर्शन का ही नतीजा हैं। माँ ने पूरा बैग भर दिया था। माँ यह क्या है? मेरे पास तो पहले से ही एक बैग है। चुप करो, माँ ने डांट दिया था।पहली बार बहन के घर जा रहा है। मैंने सभी के लिए कपड़े डाल दिए हैं। मंजुला को हमारी मजबूरी पता है। नहीं तो मैं भी साथ चलती। परिवार में शादी हैं। मैंने उसके लिए भी समान रख दिया है बैग में, मंजुला सब समझ जाएगी। बस तुम उसे बैग थमा देना।

बसस्टैंड पर भारी भीड़ थी। ऐसे लग रहा था दीवानपुर की बस भी नहीं मिलेगी। सफर भी लंबा था और बसें भरी हुई थी। पास खड़े एक यात्री से पूछ ही लिया भाई दीवानपुर की बस कहाँ मिलेगी? साहब सात नंबर पर मिलेगी। बस में बहुत भीड़ थी सब धक्का-मुक्की पर उतारू थे। मन ही मन कह उठा आज कहाँ फँस गया? किसी तरह बस में सीट भी मिल गई।किसी तरह से जान में जान आ गई। बस में भीड़ के कारण दम घुट रहा था।सवारियाँ भी तो अजीब थी खूब बीड़ियाँ सुलगा रही थी। चारों तरफ़ धुँआ पसरा हुआ था। सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। किसी तरह मुँह पर रूमाल रख कर बैठा रहा। बस चलने के इंतजार में, बस चल पड़ी। तभी एक सहयात्री की आवाज कानों में पड़ी। मैंने चैन की सांस ली।

बस से बाहर झांकने पर चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही थीं। मन में अजीब सी शांति पसर रही थी। प्रकृति के साथ रहना हमें शांति देता है। शहर की भीड़-भाड़ वाली जिंदगी, मुँह से आह निकल पड़ती हैं। हर तरफ अंधी दौड़ लगी रहती है, भौतिकवाद की दौड़। बढ़ते शहर, प्रकृति के लिए खतरा पैदा कर रहे। लगातार वनों की संख्या घटती जा रही हैं।  साहब कहाँ जा रहे हो? तो ध्यान भटका दीवानपुर, पर बस तो दौलतपुर तक ही जाएगी। क्या? पर आप घबराइए नहीं। दीवानपुर हमारे गांव से दो किलोमीटर ही रह जाता है। आपको कोई ना कोई सवारी मिल ही जाएगी। मैं थोड़ा सहज हो गया, बस रुक गई। सारी सवारी उतर गई। बस लगभग खाली हो गई थी। दो-दो बैग लेकर मैं भी परेशान होकर उतर गया।

सवारी ना मिलती देखकर मैं भी खेतों में किनारे-किनारे चल पड़ा। साँझ की ठंडी-ठंडी हवा मेरे चेहरे पर फुहार की तरह लग रही थी। मन शीतल हो गया था। कुछ ही लोग जाते दिख रहे थे। पास जाकर देखा तो कुछ औरतें भी उनके साथ थी। मुझें नजदीक आते देखकर बोले आप इस गाँव के तो नहीं लगते। बाहर से आए हो, शहर के हो। जी हाँ। बैग का बोझ भी लग रहा था। थकान भी हो रही थी। शहर में तो थोड़ी सी दूरी पर ही सवारी मिल जाती हैं। शहर में तो जैसे हम पैदल चलना ही भूलते जा रहे थे। तभी लाओ साहब एक बैग मुझे दे दो। कुछ दूर ले चलता हूँ। ना चाहते हुए भी उसे पकड़ा दिया। साहब, शहर के लोग कमजोर ही होते हैं तभी एक जनाना आवाज ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा।

पास जाकर देखा वह बहुत सुंदर लड़की थी। गुलाबी चेहरा, चेहरे पर होंठ के नीचे तिल का निशान। मोटी-मोटी आंखें सुंदरता की मूरत। वह बोल पड़ी क्या देख रहे हो साहब? आवाज भी मीठी थी। मैं झेंप गया था। मैं उस पर से  ध्यान नहीं हटाना चाहता था। वह चुपचाप चलती जा रही था। तभी उसने पूछा गाँव में किसके घर जा रहे आप? मेरी दीदी के परिवार में शादी हैं। अच्छा आप मंजुला दीदी के घर जा रहे हैं। आप उनके परिवार को जानती हैं।उनके परिवार को सारा गाँव जानता हैं।हमारा गाँव अधिक बड़ा नहीं है। एक घर के बाहर आकर वह रुक गई। यही है आप का ठिकाना। मैंने सभी का धन्यवाद किया। मन कर रहा था उससे और भी बात करूँ। पर वह आंखों से ओझल हो चुकी थी?

जाते ही मैंने दीदी के पाँव छुए। जीजा जी ने मेरा जोरदार स्वागत किया। जीजा जी ने मुझे कसकर गले लगा लिया। सभी के सामने मेरी तारीफ के पूल बाँधने लगे। यह है हमारे सुधीर बाबू, बहुत बड़े विद्यालय में पढ़ाते हैं। खूब कमाते हैं और पता नहीं क्या-क्या? दीदी ने मेरा चेहरा देखते ही स्थिति संभाल ली। सुधीर थोड़ा आराम कर लो फिर ढेर सारी बातें होगी।
सुबह देर से आँख खुली। सात बज रहे थे। तभी बड़ी मीठी आवाज कानों में पड़ी। मंजुला भाभी घर पर हो क्या? आवाज जानी-पहचानी लगी। अरे सरिता, आ जाओ घर पर ही हूँ। आज खेत में नहीं गई भाभी। नहीं, आओ तुम्हें अपने भाई से मिलवाती हूँ। वह सीधी कमरे में आ गई। यह है सुधीर मेरा भाई, सुधीर यह है सरिता। वह हाथ जोड़कर नमस्ते करती हुई खूब चहक रहीं थी। सरिता तुम बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूँ। ना भाभी ना चाय तो आप शहर वालों को ही पिलाओ। अच्छा ठीक है कह कर दीदी बाहर चली गई।

क्या बात आपको शहर वालों से बड़ी चिढ़ है। मैंने उठकर उसका हाथ पकड़ लिया। उसने मुझें एक जोरदार तमाचा जड़ दिया। पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया, देखा ना शहर वालों की हरकत।वह कुछ बड़बड़ाती हुई चली गई। मैं खुद को बड़ा अपमानित महसूस कर रहा था। पर मन ही मन ठान लिया था कि इस अपमान का बदला मैं जरूर लूंगा। दीदी ने कहा अब शादी कर लो, सुधीर। मैं चुप रहा दीदी फिर बोली। अगर कोई पसन्द हो तो बता देना। दीदी, मुझें सरिता पसंद है। अच्छा ठीक है मैं बात करती हूँ उसके परिवार से। खुशखबरी है सुधीर, उसका परिवार मान गया है। जल्दी ही शादी करना चाहते हैं। अगर तुम सरिता से कुछ बात करना चाहते हो तो बताओ। नहीं दीदी ठीक है। ताई जी भी इस रिश्ते के लिए मान गई हैं। मेरे मन में तो अलग ही खिचड़ी पक रही थी। मैं उससे बदला लेना चाहता था। उसे जिंदगी भर सताना चाहता था।

दीदी – सुधीर कुछ बात करना चाहती हूँ। सरिता बहुत साधारण लड़की है। वह गाँव की पृष्ठभूमि में पली-बढ़ी है।उसने मुझें सब कुछ बता दिया है। तुम सिर्फ इतना बताओ। क्या उसने गलत किया है? मैं कुछ भी बोल नहीं सका। दीदी ने आगे बोलना शुरू किया, गाँव का माहौल शहर से बिल्कुल अलग होता हैं। यहाँ पर आज भी इज्जत को सबसे ऊपर रखा जाता है। हमें कोई हक नहीं किसी के साथ बुरा व्यवहार करने का, तुम भाग्यशाली हो जो तुम्हें सरिता जैसी हँसमुख और संस्कारी लड़की मिल रही है। उसका हमेशा सम्मान करना। वह तुम्हारी जीवन साथी बनने जा रही हैं।

सुधीर – दीदी आपने मेरी आँखें खोल दी। मुझें मेरी गलती का अहसास ही गया है। पहले आपने मुझे शिक्षा का पाठ पढ़ाया और आज जिंदगी का।सरिता सब सुन रही थी। वह अन्दर आ गई, चलो अब गले लगा लो। वह हँस दी। शादी के बाद, ठीक है ना मंजुला दीदी। बस वह इतना ही बोली सत्य वचन, सुधीर मन ही मन जीवन के पाठ के लिए मंजुला दीदी का धन्यवाद कर रहा था।

rakesh kr.
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
Email-tagala269@gmail.com  

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