अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस पर विशेष…”संसदीय ‘वाद-विवाद’ का अनुवाद”

विनय कुमार सिंह, नई दिल्ली । संसद भवन, भारतीय लोकतंत्र का सबसे पवित्र मंदिर है। संसद में होने वाला वाद-विवाद अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में संसदीय पुस्तकालय में सुरक्षित रखा जाता है ताकि माननीय सांसद, शोधार्थी और अन्य इच्छुक लोग संदर्भ के लिए उक्त वाद-विवाद का भविष्य में भी इस्तेमाल कर सकें। चूंकि संसदीय वाद-विवाद सदैव के लिये इतिहास की थाती बन जाता है इसलिए उसका अनुवाद अत्यंत सावधानी और सूझबूझ से करना चाहिए।

कुछ शब्द और वाक्यांश संसदीय भाषा में रूढ़ हो गए हैं। उदाहरणार्थ –
“Hon. Speaker- माननीय अध्यक्ष
Hon. Chairperson- माननीय सभापति
Quorum- गणपूर्ति
Introduced- पुरःस्थापित
Long title of the Bill- विधेयक का पूरा नाम
Note of dissent – विमत टिप्पण
आदि आदि। अतः इन शब्दों और वाक्यांशों का अनुवाद अपने विवेक से या किसी शब्दकोश से करने के बजाए रूढ़ हो चले शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए।

कुछ माननीय सांसदों की भाषा पर इतनी मजबूत पकड़ होती है कि उनके भाषण का अनुवाद करना टेढ़ी खीर साबित होता है। उदाहरण के लिए माननीय सांसद शशि थरूर और मनीष तिवारी के क्लिष्ट और लंबे-लंबे वाक्यों वाले अंग्रेजी भाषणों का हिंदी अनुवाद करना बिल्कुल भी आसान नहीं होता है। वहीं दूसरी ओर स्वर्गीय सुषमा स्वराज, मनानिया श्रीमती स्मृति ईरानी और ओडिशा के माननीय सांसद श्री प्रतापचंद्र सारंगी की परिमार्जित भाषा और संस्कृतनिष्ठ हिंदी का अंग्रेजी में अनुवाद करना भी मुश्किल कार्य है। माननीय सांसद श्री प्रताप चंद्र सारंगी के भाषण का एक अंश देखिए, तब मेरी बात अधिक स्पष्ट हो जाएगी।

“मैं संत और असंत, साधु और शैतान दोनों की वंदना करता हूं। क्योंकि दोनों में एक साम्य है। क्या साम्य है? दोनों ही दुःखप्रद हैं। सज्जन का विच्छेद दुःखप्रद है और दुर्जन का मिलन ही दुःखप्रद है। दोनों ही समान हैं।”

इसी तरह माननीय संसद सदस्य आजम खान और असादुद्दीन ओवैसी की उर्दू मिश्रित ज़बान और शेर भी कई बार अनुवादकों को दुविधा में डाल देती है। ऐसे में लिप्यंतरण (ट्रांसलिट्रेशन) के सिवाय कोई चारा नहीं बचता है। एक बानगी देखिये-
“बाजीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे।
होता है शब-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे।।”

बंगाल से चुनकर आये माननीय सदस्यों के भाषण में “लिंग” का भ्रम हमेशा ही बना रहता है क्योंकि उनके यहां “रेलगाड़ी चलता है” जबकि शेष भारत में “रेलगाड़ी चलती है।” तमिलनाडु के माननीय सांसदों का अपना भाषण शुरू करने से पहले अपनी पार्टी के नेता का बखान करना भी अनुवाद में समस्या बन जाता है। एआईएमडीके के लगभग सभी संसद सदस्य अपना भाषण शुरू करने से पहले स्वर्गीय जयललिता को “पुराची थलैवी अम्मा” कहकर सम्मान देते थे तो डीएमके के सांसद अपने नेता स्वर्गीय करुणानिधि को “कलईनार” कहकर महिमामंडन करते आये हैं।

महाराष्ट्र से आने वाले एक माननीय सांसद के भाषणों से तो कई बार यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि उन्होंने अपनी बात गद्य में कही है या पद्य में। अब आप ही बताइए कि इन पंक्तियों (पैराग्राफ) का अनुवाद क्या होगा-
“एक देश का नाम है रोम,
लेकिन लोकसभा के अध्यक्ष बन गए हैं, बिरला ओम।
लोकसभा का आपको अच्छी तरह चलाना है काम,
वेल में आने वालों का ब्लैक लिस्ट में डालना है, नाम।
नरेंद्र मोदी जी और आपका दिल है विशाल,
राहुल जी आप अब रहो खुशहाल।
हम सब मिलकर हाथ में लेते हैं एकता की मशाल और भारत को बनाते हैं और भी विशाल।
आप का राज्य है राजस्थान, लेकिन लोकसभा की आप बन गए हैं, जान।
भारत की हमें बढ़ानी है शान, लोकसभा चलाने के लिए आप जैसा परफेक्ट है, मैन।”
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कई बार सांसद, वाद-विवाद के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं के ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हैं जिनका अर्थ किसी भी शब्दकोष या गूगल अनुवाद में नहीं मिलता है। उदाहरण के लिये- बिहार राज्य की एक सांसद महोदया ने सरकार से निवेदन किया कि उनके यहां के किसान “घोड़परास” से परेशान हैं। घोड़परास किसानों की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। बिहार के ही एक अन्य माननीय सांसद ने सरकार से अनुरोध किया कि उनके संसदीय क्षेत्र में बरसात से पहले “पईन” की अविलंब सफाई होनी चाहिए। उत्तराखंड के एक सांसद ने पानी की समस्या पर बात रखते हुए निवेदन किया कि उनके क्षेत्र में घरों से दूर स्थित “छोया” और “गदेरा” ही पानी के स्रोत हैं, इसलिए वहां पाइप के माध्यम से पानी पहुंचाने की तत्काल आवश्यकता है। अब सोचिये कि अगर आपको यह पता न हो कि घोड़परास का मतलब नीलगाय, पईन का मतलब नाला और छोया का मतलब पहाड़ों से स्वतःस्फुटित पतली जलधार और गदेरा का तात्पर्य दो पहाड़ों के मध्य की जलधारा होता है, तो आप सही अनुवाद कैसे कर पाएंगे??

संसदीय वाद-विवाद का अनुवाद करते समय कई बार ऐसे वाक्य आ जाते हैं जिनका शब्दशः अनुवाद करने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
एक वास्तविक उदाहरण देखिये-

“The next annual meeting of National Conference will be held at Shrinagar.”
किसी ने इसका अनुवाद किया कि-
“राष्ट्रीय सम्मेलन की अगली वार्षिक बैठक श्रीनगर में होगी।”

यह चूक इसलिये हुई क्योंकि अनुवादक को यह ज्ञान नहीं था कि जम्मू और कश्मीर में ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’ नामक एक राजनीतिक दल भी है। और यह तो सबको पता है कि व्यक्तिवाचक संज्ञा का अनुवाद न करके उसे ज्यों का त्यों लिखा जाता है।

एक दूसरा उदाहरण देखिये-
‘Central Bank of India has kept the lending rate unchanged for the third quarter of Financial Year 2020-21.”
किसी ने इसका अनुवाद इस तरह किया-

” ‘सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया’ ने वित्तीय वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही के लिये ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है।”
अनुवाद की दृष्टि से देखें तो उपरोक्त अनुवाद बिल्कुल ठीक प्रतीत होता है। क्योंकि अपने देश मे “सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया” नामक बैंक भी है और ब्याज दरों में बदलाव बैंक कर सकता है।
लेकिन सामान्य बोध यह कहता है कि भारत मे किसी भी वित्तीय वर्ष की तिमाही ब्याज दरों (रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट) में बदलाव की घोषणा सिर्फ देश का केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिज़र्व बैंक ही कर सकता है। इसलिए उपरोक्त अनुवाद व्याकरण और शब्दार्थ की दृष्टि से तो बिल्कुल ठीक है लेकिन भावार्थ की दृष्टि से गलत है।

इसलिए संसदीय वाद -विवाद का सटीक अनुवाद करने के लिए अनुवादक को स्रोत और लक्ष्य भाषा पर अधिकार होने के साथ-साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों में बोले जाने वाले देशज शब्दों, भाषाओं और बोलियों, राजनीति और अर्थशास्त्र की भी कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिए।IMG-20220930-WA0001

विनय कुमार सिंह
(अनुवाद अधिकारी, लोकसभा सचिवालय)

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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