अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष : राम प्रह्लाद की कविता – भाषा

।।भाषा।।
राम प्रह्लाद

भाषा भावों की अभिव्यक्ति है
भाषा जन-जन की शक्ति है
भाषा के बल हम सभ्य हुए
भाषा समाज की शक्ति है
भाषा बिन मानव पाषाण बने
भाषा से जीवन आसान बने
भाषा नव-युग का सृष्टा है
इसलिए देश की शान बने

भाषा भूमि की उर्वरता
भाषा आंखों का पानी है
भाषा शिशुओं की किलकारी
भाषा भावों की जवानी है
यह सप्त सुरों का है संगम
भाषा कवियों की बानी है
भाषा जिंदगी की है धड़कन
भाषा एक अमिट कहानी है

भाषा तितली के रंगीले पर
भाषा भंवरों की है गुंजन
यह पुष्पों का है पराग और
अपने गुलशन का माली है
भाषा बगिया की हरियाली
भाषा सूरज की लाली है
भाषा मानवता के अधरों पर
अमृत-भावों की प्याली है

भाषा मातृभूमि पर अर्पित है
भाषा श्रमिकों का लोहित है
भाषा से ही मानव-सभ्यता
युग-युग से अब तक पोषित है
भाषा शहीदों का बलिदान
भाषा धरती की है जान
भाषा मनीषियों का है ज्ञान
भाषा हर प्रश्नों का समाधान

भाषा है तो हम जिंदा हैं
भाषा के बल नभ में परिंदा है
भाषा बिन मानव-मूल्य नहीं
भाषा बिन मानव-प्राण नहीं
सपनों की नगरी में भाषा
सच होने की एक प्रवणता है
भाषा गीतों की है पायल
भाषा श्रृंगारों की सुंदरता है

भाषा वीरों की है ललकार
भाषा युद्धों का हाहाकार
भाषा सब अर्थों का है अर्थ
बिन भाषा सब कुछ है व्यर्थ
भाषा है मधु का मिठास
भाषा है चातक की प्यास
संवाद-हीन इस दुनिया में
भाषा है मानवता का आस
भाषा है मानवता का आस

राम प्रह्लाद, कवि

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