लघुकथा : उलझन

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राजीव कुमार झा। संदीप के लिए मुंबई शहर का परिवेश आज भी काफी अपरिचित हैं लेकिन वह यहां के लोगों के जीवन और संस्कृति की बातों को अब ठीक से समझता है। यह बात उसके सारे दोस्तों को मालूम है लेकिन शुरू में अक्सर वह यहां उलझन से घिरा आदमी प्रतीत होता था। अज्ञानता हमारी तमाम मुसीबतों की जड़ में कही जाती है और संदीप मुंबई आने के बाद कभी किसी अपरिचित लड़की से प्यार करने लगा था।

उसे कुछ दिनों के बाद यह पता चला था कि वह किसी कालगर्ल की बेटी थी, जिसने कालेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई-लिखाई भी की थी और अब अपने घर परिवार की जीवन संस्कृति के अनुरूप मुंबई में नवागंतुक किसी सीधे सादे युवक को अपने रूपजाल में फंसाकर विवाह करके देह व्यापार के धंधे को भी जारी रखना चाहती थी।

संदीप रीमा नामक इस लड़की की संगति में आकर काफी दिनों तक प्रेम के उलझन में फंसा रहा लेकिन एक दिन इसी के भीतर से उसे मुंबई में प्रेम से जुड़ी सही बातों का अहसास हुआ और बहुत जल्द वह रीमा की संगति से बाहर निकल गया और कुछ महीनों के बाद पिता की इच्छा के अनुरूप उसने अपनी बिरादरी की किसी गरीब लड़की से गांव जाकर विवाह कर लिया और यहां मुंबई में वह उसके साथ सम्मान से रहता है।

Rajiv Jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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