किशन सनमुख़दास भावनानी की व्यंग कविता- मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं

व्यंग्य कविता
।।मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं।।
किशन सनमुख़दास भावनानी

मैं लोगों को बहुत ज्ञान बांटता हूं
उदाहरण सहित नसीहतें देता हूं
सचेत रहने की सलाहें देता हूं
पर मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं।

खास व्हाट्सएप ग्रुप में अच्छी पोस्ट
डालने की सलाह देता हूं
डर्टी बातें मीडिया में नहीं देखने
की बातें जोर देकर बोलता हूं
पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं।

आध्यात्मिक वाणी वाचन बहुत करता हूं
संगत को अमल करने की सलाह देता हूं
बुरी चीजों से दूर रहने को बोलता हूं
पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं।

भाषणों में मैं विकास की बातें बहुत करता हूं
याद से मेरे चिन्ह पर ठप्पा लगाने को कहता हूं
जनता जनार्दन हित की बातें बहुत करता हूं
पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं।

समाज को प्रगति पथ पर चलने को कहता हूं
उत्साह से उच्च पद कायम करने कहता हूं
गरीबों की सेवा करने सबको उत्साहित करता हूं
पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं।

मिलकर राष्ट्र निर्माण करने की बात करता हूं
संस्थापक होने की डींगें बहुत हांकता हूं
जनसेवा में सेवा करने की सलाह देता हूं
पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं।

किशन सनमुख़दास भावनानी

किशन सनमुख़दास भावनानी- कवि, लेखक, स्तंभकार, साहित्यकार, कानूनी लेखक, चिंतक, एडवोकेट, कर विशेषज्ञ

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