पूरे विश्व ने चुप्पी साध रखी है
हर डगर में घूमता कोरोना
उस हिटलर को बड़ा गुमान है
हम उससे लड़ते सुबह शाम है
अरे सुन कहर बरसाने वाले
वैक्सीन के नाम पर कमाने वाले
तू क्या समझता है स्वयं को
ऐ कोरोना के जन्मदाता
तूने विश्व में असंख्य है लाशे बिछाई
जुदा किया इंसा को इंसा से
पर शुक्र है इंसानियत की
उसे ना जुदा कर पाए
वे ईश्वर बन
डॉक्टर, पुलिस , सफाई कर्मचारी
के रूप में मदद को आगे आए
कोई बिलखता है, तो कोई रोता है
कोई मां की यादों में आंसू पिरोता है
किसी का चूल्हा ठंडा है
कोई कहता बाजार मंदा है
‘कहां जाई , का करी’ श्रमिक वर्ग सहित सभी
तुलसीदास की ये पंक्तियां अलापते है
कोरोना से कब मिलेगी राहत ये भापते है
राशन की राहत मिल गई है
तो अब कहर है चक्रवात का
ध्वंस करता शहर , गांव , बस्ती
अब बैठी है जिंदगी कस्ती पर
बस नाव है चल रही
पर उम्मीद है अब भी टिकी,
आशाओं की किरणों का
हम जीतेंगे, जीतेंगे
इस कोरोना की लड़ाई से
फिर से चहक उठेगा हिंदुस्तान
और धराशाई होगी कारोना की महामारी
पुनः लौट आएगी
हर घर में वे खुशियां सारी
अंत में इतना कह दू
चीन करले तू अपनी पूरी तैयारी
क्यूंकि पूरी दुनिया तुझपे
पड़ने वाली है भारी…।
-रूम्पा कुमारी साव ✍🏻
कोलकाता(पश्चिम बंगाल)