रीमा पांडेय की कविता : राखी क्यों बँधवाते हो?

राखी क्यों बँधवाते हो?

ऐ भाई! जब बहनों का तुम साथ ही नहीं निभाते हो,
विपदा तुम उनके जब अश्रु नहीं बहाते हो,
इस पावन बंधन का जब मोल ही नहीं चुकाते हो,
इक बात कहूँ मेरे भाई! तुम राखी क्यों बँधवाते हो?

ऐ भाई! तुम बहनों का जब लाज ही नहीं बचाते हो,
बेसहारा छोड़ उन्हें जब फूले नहीं समाते हो,
अग्नि दहेज में जलने से जब उनको नहीं बचाते हो,
इक बात कहूँ मेरे भाई! तुम राखी क्यों बँधवाते हो?

ऐ भाई! जब बहनों का हक भी तुम खा जाते हो,
ससुराल वंचिता बहनों के जख़्मो पर नमक लगाते हो,
अपने ही घर में बहनों को अपमान के घूँट पिलाते हो,
इक बात कहूँ मेरे भाई! तुम राखी क्यों बँधवाते हो?

ऐ भाई! तुम बहनों को कमतर ही सदा बताते हो,
अवगुण पर अपने रहते तुम इतराते हो,
ऐसा करके ऐ भाई! तुम दिल में नहीं समाते हो,
इक बात कहूँ मेरे भाई! तुम राखी क्यों बँधवाते हो?

रीमा पांडेय

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