।।जिंदगी का आंगन।।
राजीव कुमार झा
तुम प्यार में
सिर्फ स्वार्थ की बातें
सदैव करती रही
इतनी सारी खुशियों को
बटोरकर
प्यार के खेल में
हार-जीत से बचती
गयी
जिसने तुम्हारे मन के
बाग को सजाया
उसी को आज तुमने
यह सब बताया
प्यार की गंगा
सबके पास बहती
अरी सुंदरी
तुम्हारी मुस्कान
संसार में रोज
सबसे अच्छी लगती
तुम्हारी सांसें
यादों के आंगन में
महकती
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