राजीव कुमार झा की कविता : सच्चा प्यार

।।सच्चा प्यार।।
राजीव कुमार झा

समुद्र की लहरों पर
थिरकती हुई खामोशी
कितनी दूर
यहां फैला हुआ पानी
अरी सुंदरी
तुम इसमें नहाकर
आज ऐसी लगती
मानो सबसे सयानी
जंगल में महकती
हवा
सावन की गलियों में
आकर ठहर गयी
बादल ने
प्यार की बारिश में
तुम्हारे तन मन को
भिगो दिया
शाम में जल रहा
सच्चे प्यार का दीया

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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