राजीव कुमार झा की कविता : पैगाम

।।पैगाम।।
राजीव कुमार झा

अब सबकी
मुहब्बत की खबर
सुनकर
तुम्हें अहसास होगा
अब घर के बाहर
सबसे पहले
उसी का नाम होगा
जिसके पास में सदा
सच्चे मोहब्बत का
यहां पैगाम होगा
मोहब्बत का जमाना
जो मन की गलियों में
अब कहीं आवारा
बना फिरता
सूरज उसी नदी की
धार में प्यार से
जिंदगी की नाव पर
बैठा तिरता
यहां हंसता
कभी याद आता
वह घर-बाहर का
सबसे पुराना
अफसाना
तुमसे हमारा याराना
याद करते
सारे मुकदमों का
इजलास में खत्म हो
जाना
उसी ताजोतख्त पर
आकर
अरी प्रिया
सुबह शान से इतराना

Rajiv Jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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