उत्तीर्णा धर की कविता : पत्ते

“पत्ते”

प्रथम में हल्का हरे रंग का लाल लाल ,
जैसे हरियाली में ढल गया हो गुलाल l
अति लघु लिए हैं शिशु का रूप,
निखरता है रंग जब इसमें पड़ती है धूप l
धीरे-धीरे गहरे हरे रंग में बदलाव ,
धूप में भी पहुंचाता है यह छांव l
सिकुड़ने लगता है वृद्धावस्था में ,
रंग में परिवर्तन होता है फिर से l
अब कनक समान पीले रंग का हो जाता है ,
जैसे टहनी से बस यह छूटना ही चाहता है l
भूरे रंग में बदलकर अब छूट पड़ता है ,
हवा के सहारे इधर-उधर भटकता रहता हैl

उत्तीर्णा धर
प्रेसीडेंसी विश्व विद्यालय,

स्नातक द्वितीय वर्ष (हिंदी हॉनर्स)

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