लूट लेता है सब कुछ शहर
लौट के कुछ नही आता है
अजीबो सा है ये शहर
आदमी भी यहाँ बिक जाता है
रक्त का कोई मोल नही
रंगो के भाव मिल जायेगा
हर जगह खरीदार है
लाशें भी बिक जायेगा
रंग बदलती इस दुनिया में
मानवी भेष बदल रहा
ताली पीट रहे यहाँ लोग
सच का भाषा बदल रहा
हर तरफ है घोर अंधेरा
इंसानियत न कही दिख रहा
सत्य का लौ कैसे जलाओगे
जज्बात न कही दिख रहा
ठहरो थोड़ा सुन लो जरा
धरती अब काँप रही
बढ़ते बोझ संताप का
धरती अब हाँफ रही
सुधीर सिंह, कवि