राजीव कुमार झा की कविता : कोलकाता

।।कोलकाता।।
राजीव कुमार झा

भीड़भाड़ से भरा
यह शहर
आदमी यहां आकर
काफी कुछ देखता
सुबह होते ही
सियालदह स्टेशन से
खुलने लगतीं
डायमंड हार्बर
जाने वाली
ईएमयू रेलगाड़ियां
मछली बेचने वाले
शहर के दूरदराज
इलाकों से
महानगर में
आकर
काम करने वाले
सड़कों पर
आते-जाते
दिखाई देते
लोकल गाडियों में
लोगों की भीड़
बढ़ने लगती
विक्टोरिया मेमोरियल में
कंपनी काल के
इतिहास से अलग
पुराने पेड़ की
ओट में बैठकर
बातें करते लोग
अक्सर
दिल्ली शहर से
इस नगर की
तुलना
करते लोग
खुद को किसी
बेहतर जगह के बीच
बैठा पाते
सभी लोग
भद्र लोगों के
इस नगर में
इत्मीनान से
शाम में घर
लौटकर आते
सुबह निकल जाते
यहां की औरतें
नौकरी करने के लिए
काफी दूर-दूर
जाती हैं
सोनागाछी का नाम
सुनकर
सब डर जाती हैं
समुद्र के किनारे से
सुंदरवन के
दलदल तक
फैला
यह नगर
आज भी किसी
गांव की तरह
अंधेरे में
रोज डुबकर
सुबह सबको
अपने पास
बुलाता है!
जीवन के बारे में
सबको बताता है

rajiv jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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